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इंदौर मंदिर हादसे में इकलौते बेटे की मौत:मां के नहीं रुक रहे आंसू; 5 परिवारों की ऐसी ही कहानी

संतोष सिंह – साभार : दैनिक भास्कर

इंदौर – बेटा बोलकर निकला था कि मैं जा रहा हूं, तुम आना। मैं नहीं पहुंच पाई। फोन आया तो मैं दौड़कर पहुंची, लेकिन मुझे अंदर जाने नहीं दिया गया। वहां बहुत भीड़ थी। मेरा बच्चा बावड़ी में समा चुका था।’ ये कहते-कहते रिया खत्री रो पड़ीं। ये दर्द अकेली रिया का नहीं है, बल्कि ऐसे कई लोगों का हैं जिन्होंने इंदौर के बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर हादसे में अपनों को खो दिया। हादसे में जान गंवाने वाले लोगों के परिजन ने बताया कभी न भूलने वाला दर्दनाक मंजर…..

मैं पहुंचा तो एक कमरे में कोने पर सोमेश की सेल्फी वाली फोटो फ्रेम कराकर रखी गई थी। इस फोटो पर फूलों का हार चढ़ा था। दूसरे कोने में बेड पर बैठकर रिया आंसू बहा रही थीं। सिंधी काॅलोनी निवासी कमल और रिया खत्री की इकलौती संतान सोमेश खत्री (11) का शव आर्मी वाले हादसे के दूसरे दिन (31 मार्च) सुबह निकाल पाए थे। ये 35वीं लाश थी। ये सोचकर ही आप सिहर जाएंगे कि कैसे 18 घंटे परिवार के गुजरे होंगे।

मां रिया खत्री हादसे के बाद से बेटे के शव मिलने तक एक पल को भी हादसे वाली जगह से नहीं हिली थीं। हादसे के पांच दिन बाद इस परिवार का दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा। रिया ने पांच दिन से अन्न का एक निवाला तक नहीं गले से नीचे उतारा है। वह हर पल बेटे की तस्वीर के सामने बैठी रहती हैं। मेरा बेटा चला गया… मेरा बेटा चला गया… कहकर वह रोने लगती हैं।

छह साल की उम्र से मंदिर में सेवा देने जा रहा था सोमेश

पांचवीं में पढ़ने वाले सोमेश की उम्र भले ही कम थी, लेकिन वह छह साल की उम्र से ही मंदिर में सेवा करने जाने लगा था। सोमेश के चाचा रवि खत्री के मुताबिक बेलेश्वर झूलेलाल महादेव मंदिर से इस पूरे क्षेत्र की आस्था जुड़ी है। उसे हम लोग अपना मंदिर मानते हैं। बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी लोग रोज मंदिर दर्शन करने जाते रहते हैं। सोमेश की आस्था तो अलग ही थी। वह हर सावन, महाशिवरात्रि, नवरात्रि में सेवा देने जाता था। रामनवमी (30 मार्च) के दिन भी वह भंडारे में सेवा देने घर से निकला था।

थोड़ी देर बाद हम लोग भी जाने वाले थे, लेकिन तब तक ये हादसा हो गया। जैसे ही हमें खबर मिली की बावड़ी का स्लैब ढह गया है, हम दौड़ कर पहुंचे, लेकिन सोमेश कहीं नहीं दिखाई दिया। शाम तक प्रशासन का ढुलमुल रवैया ऐसा रहा कि वो और लोगों के बावड़ी में होने की बात को मानने को ही तैयार नहीं थे। हमने 24 लोगों की लिस्ट दी, तब जाकर रात में सेना बुलाई गई। सोमेश का शव 31 मार्च की सुबह 5.30 बजे निकाला जा सका।

दो साल का बेटा रोज दादा को खोजता है, क्या जवाब दूं

मंदिर हादसे में 36 मौतों में एक नाम सिंधी कॉलोनी निवासी 57 वर्षीय नंदकिशोर मंगवानी का भी है। प्राइवेट जॉब करने वाले नंदकिशोर के दो बेटे रवि और सचिन हैं। तीन साल पहले उन्होंने दोनों बेटों की शादी एक ही दिन की थी। दो साल का पोता तनिष्क उनके दिल के करीब था। पिछले 20 सालों से वे नियमित बेलेश्वर झूलेलाल महादेव मंदिर में दर्शन करने जा रहे थे। पिछले एक साल से अपने साथ पोते तनिष्क को भी लेकर जाने लगे थे। नवरात्रि के दिन संयोग ही था कि वे तनिष्क को घर छोड़ गए थे।

बड़े बेटे रवि के मुताबिक रोज बेटा (तनिष्क) दादा को खोजता है, क्या जवाब दूं। रवि को मलाल है कि प्रशासन ने समय रहते निर्णय लिया होता और जल्दी रेस्क्यू शुरू किया होता, तो शायद कुछ और जिंदगी बचाई जा सकती थीं।

पत्नी दिव्या मंगवानी ने बताया कि मेरी बहू पास के मंदिर में गई थी, वहीं इस हादसे की जानकारी हुई। बहू ने आकर बताया तो हम लोग मौके पर गए, तो वो कहीं नहीं दिखे। हम लोग अस्पताल भी गए। आखिर में सेना ने 30 मार्च की देर रात दो बजे बावड़ी से उनकी लाश निकाली।

मुझे पैसे खुल्ले कराने भेजा था, लौटा तो हादसा हो चुका था, वे दूसरे को बचाने में गिर गए

तीसरी कहानी भी इसी सिंधी कॉलोनी की है। किराए पर कपड़े की दुकान चलाने वाले इंदर कुमार हरवानी (53) की अभी कच्ची गृहस्थी है। दो बेटे हैं। अश्विन कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर जॉब की तलाश में है। वहीं छोटा बेटा कृष्णा अभी बी.कॉम प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहा है। बुजुर्ग पिता थावरचंद करमचंद हरवानी अक्सर बीमार रहते हैं, उनकी जिम्मेदारी भी इंदर पर ही थी। इस घर को चलाने वाले इंदर को भी इस हादसे ने छीन लिया।

पत्नी मीरा के मुताबिक 30 मार्च की सुबह 8.30 बजे ही वह बड़े बेटे अश्विन के साथ मंदिर गए थे। पिता-पुत्र दोनों साथ में हवन में शामिल होने बैठे थे। अश्विन के मुताबिक हादसे के पहले पापा (इंदर कुमार हरवानी) ने मुझे पैसे खुल्ले कराने भेज दिया। मैं खुल्ले पैसे लेकर लौटा, तब तक हादसा हो चुका था। मैं दौड़कर मौके पर पहुंचा, तो देखा कि पापा बावड़ी में पानी में गिरे हुए थे। कुर्ता-पैजामा से मैं पहचान पाया। लोगों ने बताया कि वे लोगों को बावड़ी से निकालने के दौरान गिर गए थे। चौथी लाश मेरे पापा की ही निकली थी। मीरा पति का जिक्र होते ही फफक पड़ती हैं। कहती हैं कि सरकार ने मुआवजा दिया है, पर इतने से क्या होगा। 20 लाख तो कर्ज है। कर्ज दूं कि बच्चों को पालूं।

3.30 घंटे बाद घरवालों को हादसे के बारे में पता चला, 12 घंटे बाद रात तीन बजे शव निकला

चौथा परिवार है इंदर चांदकी (47) का है, जिन्होंने इस हादसे में जान गंवा दी। बिल्डिंग-कंस्ट्रक्शन से जुड़े इंदर चांदकी दो बहनों के इकलौते भाई थे। 75 की उम्र पार कर चुके पिता नारायण चांदकी फॉरेस्ट विभाग से रिटायर होने के बाद कुछ समय तक पत्रकारिता भी कर चुके हैं। उम्र के इस पड़ाव में नारायण चांदकी को इकलौते बेटे की मौत ने तोड़ कर रख दिया। कहते हैं कि दो नाती नीरज 12वीं में और छोटा भव्य 5वीं में पढ़ रहा है। बहू पूनम की हालत देखी नहीं जा रही है। हमें तो 3.30 घंटे बाद इस हादसे की जानकारी हुई।

2006 में ये परिवार सिंधी कॉलोनी में आया। तब से इंदर चांदकी रोज मंदिर जाते थे। स्नेह नगर निवासी इंदर के जीजा हरीश ने बताया कि मुझे पड़ोसी से 30 मार्च की दोपहर डेढ़ बजे मालूम चला कि बेलेश्वर मंदिर की बावड़ी धंस गई है। कई लोगों की मौत हो गई है। मुझे पता था कि इंदर भी नियमित तौर पर मंदिर जाता था। दिल की धड़कनें बढ़ गईं। इंदर के मोबाइल पर कॉल किया तो वह बंद बता रहा था। मौके पर गया तो वहां पुलिस अंदर जाने नहीं दे रही थी। वहां से घर लौटा और पत्नी रेनू तोलानी (इंदर की बहन) को बताया कि जरा अपने घर फोन कर इंदर के बारे में पता करो।

रेनू ने फोन किया तो मालूम चला कि इंदर मंदिर गए हैं। इसके बाद मैं ससुराल पहुंचा। वहां से भतीजे नीरज को लेकर फिर घटनास्थल गया। दोपहर 3.30 बजे मंदिर के पास इंदर की स्कूटी एमपी 09 एसएच 0115 दिखी, लेकिन इंदर का पता नहीं था। उसका मोबाइल नंबर बंद बता रहा था। अनहोनी की आशंका में हम अस्पताल भी भागे, लेकिन वहां भी कुछ नहीं पता चला। तब तक परिवार के सभी लोग हादसा स्थल पहुंच गए थे। देर रात 3.00 बजे इंदर की लाश बावड़ी से सेना के जवानों ने निकाली। इंदर की मौत से बूढ़ी मां द्रौपदी और बहन सोनिया का रो-रो कर बुरा हाल है।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला कि मनीषा प्रेग्नेंट थी

मंदिर हादसे में सिंधी कॉलोनी निवासी मनीषा मोटवानी (26) और रिश्तेदार करिश्मा बांधवानी (24) की भी मौत हुई है। मनीषा की छह महीने पहले ही आकाश से शादी हुई थी। पति आकाश के साथ मनीषा सुबह 11 बजे मंदिर पहुंची थी। सर्वोदय नगर निवासी करिश्मा ट्यूटर थी। करिश्मा को सुबह 11.20 बजे उसके पिता राम बांधवानी मंदिर छोड़ कर निकले थे। बावड़ी का स्लैब ढहने पर तीनों एक साथ गिरे थे। आकाश तो बच गया, लेकिन मनीषा और करिश्मा डूब गईं। आंखों के सामने पत्नी मनीषा की मौत से आकाश बदहवासी के आलम में है।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला कि मनीषा प्रेग्नेंट थी। पत्नी के साथ होने वाली संतान के दुख ने आकाश को तोड़ कर रख दिया है। परिवार वालों का ढांढस भी उसके गम को कम नहीं कर पा रहा। यही हालत करिश्मा के घरवालों का है। दो भाई मयूर और भरत की करिश्मा इकलौती बहन थी। मां अनीता बेटी के हाथ पीला करने के लिए रिश्ते की बात चला रही थी। करिश्मा की लाश 30 मार्च की शाम 7.30 बजे निकली थी। अगले दिन उसका अंतिम संस्कार हुआ।

मयूर के मुताबिक दीदी पढ़ाई में बहुत तेज थीं। हम दोनों भाइयों को घर में दीदी ही पढ़ाती थीं। मंदिर हादसे में भेंट चढ़े 36 परिवारों का ऐसा ही दर्द है। अपनों को खो चुके ये परिवार अब उनकी स्मृतियों को याद कर आंसू बहाने को मजबूर हैं।

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