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एक पखवाड़े भी नहीं चल पाई पशु एंबुलेंस सेवा

रोगी कल्याण निधि में नहीं पैसा, अफसरों ने भी मोड़ा मुंह

भोपाल – मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा भव्य समारोह पूर्वक प्रारंभ की गई पशु एंबुलेंस सेवा प्रदेश में एक पखवाड़े भी नहीं चल पाई। जहां पहले यह एंबुलेंस एक सज्जन की हर जिले में पुर्नउद्घाटन की सनक के चलते जहां काफी दिन मुख्यालयों में खड़ी रहीं वहीं अब डीजल न होने के कारण धूल खा रही हैं। बताते हैं आनन फानन में बगैर किसी बजट के प्रारंभ की गई एंबुलेंस कुछ दिन रोगी कल्याण निधि से दौड़ी तो कुछ दिन अधिकारियों ने अपनी जेब से वाहनों का ईंधन भरवाया लेकिन अब वे भी हिम्मत हार चुके हैं। लिहाजा जिला मुख्यालयों में एंबुलेंस पड़े-पड़े धूल खा रही है। आलम ये है कि पशु एंबुलेंस के नाम पर आ रहे कॉल्स पर पशु चिकित्सक अपने दोपहिया वाहनों से दौडऩे विवश हैं ताकि किसी तरह कॉल्स के आंकड़ों को मुख्यालय भेजा जा सके।
सूत्रों के अनुसार 12 मई को प्रारंभ हुई इस सेवा ने एक सप्ताह पूर्व ही दम तोड़ दिया। सूत्रों के अनुसार भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, इंदौर, बालाघाट, छिंदवाड़ा सहित प्रदेश के तमाम जिलों में यही हालात हैं। सूत्रों के अनुसार बिना किसी निर्धारित बजट के प्रारंभ की गई योजना को फिलहाल रोगी कल्याण निधि की राशि से चलाने के निर्देश दिए गए थे। प्रदेश के जिलों में जब तक इस निधि में राशि थी तब तक और बाद में पशु चिकित्सा अधिकारियों ने अपनी जेब से ही डीजल का खर्च वहन कर एंबुलेंस चलवाई लेकिन शासन से राशि न आ पाने के चलते महत्वाकांक्षी योजना लगभग गर्भ में ही दम तोड़ चुकी है।

सीएम ने किया था उद्घाटन

ज्ञात हो कि 12 मई को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में गौरक्षा सम्मेलन के शुभारंभ के साथ ही प्रदेश के शहरी क्षेत्रों सहित सभी विकासखंडों के लिए 406 पशु चिकित्सा एंबुलेंस रवाना की। प्रदेश के विभिन्न जिलों में पहुंचने के बाद भी प्रारंभिक कुछ दिनों तक एंबुलेंस को 1962 पर आ रहे कॉल पर रवाना नहीं किया गया। विभागीय सूत्रों की मानें तो कथित तौर पर एक सज्जन बीमार पशुओं और एंबुलेंस के बीच रोड़ा अटकाए खड़े थे। विभागीय सूत्रों ने बताया कि 1912 पर कॉल लगाते ही जो सज्जन गौशालाओं के नाम पर दान की अपील करते हैं उन्हीं ने कथित तौर सभी अधिकारियों को कह दिया था कि वे आकर पशु एंबुलेंस सेवा का जब तक औपचारिक उद्घाटन न कर दें तब तक वाहनों को खड़े रहने दिया जाए। पहले सज्जन की सनक में तो अब डीजल की किल्लत में इस महत्वाकांक्षी योजना ने प्रारंभिक दिनों में ही दम तोड़ दिया।

उद्घाटन के चक्कर में 18 मई तक नहीं चली एंबुलेस

सीएम द्वारा 12 मई को उद्घाटन के बाद कथित सज्जन की पुर्नउद्घाटन की नौटंकी के चलते 18 मई तक एंबुलेंस मुख्यालयों में खड़ी रहीं, इसकी बानगी स्वयं पशुपालन एवं डेयरी विभाग के संचालक डॉ. आर के मेहिया का प्रदेश के समस्त उपसंचालकों को प्रेषित पत्र दे रहा है। पशुपालन एवं डेयरी विभाग के संचालक डॉ. मेहिया ने 18 मई को पत्र क्रमांक 4602/प.चि./ इएसवीएचडी-एमयूवी/ 2021-22/भोपाल में प्रदेश के समस्त जिलों के उपसंचालक पशु चिकित्सा सेवाएं को भारत सरकार की पशु चिकित्सालयों एवं औषधालयों की स्थापना सुदृढ़ीकरण चलित पशु चिकित्सा ईकाई (इएसवीएचडी-एमयूवी) योजना के क्रियान्वयन के संबंध में पत्र जारी किया। पत्र में कहा गया कि 16 मई को पशुपालन एवं डेयरी विभाग के प्रमुख सचिव के निर्देशानुसार एमयूवी द्वारा घर पहुंच चिकित्सा सुविधाएं दी जानी थी। जिन इकाईयों में पूर्ण स्टाफ नहीं है, उन इकाईयों में विकासखण्ड स्तरीय पशु चिकित्सालय के स्टॉफ के माध्यम से घर पहुंच चिकित्सा सुविधाएं प्रदाय की जानी थी। पत्र में उन्होंने स्पष्ट कहा है कि खेद का विषय है कि स्पष्ट निर्देशों के उपरांत भी एमवीयू का उपयोग पशुपालकों को घर पहुंच चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने में नहीं किया जा रहा है। डॉ. मेहिया ने पत्र के अंतिम पैरा में कहा कि पुन: निर्देशित किया जाता है कि जिले में कॉल सेंटर 1962 के माध्यम से प्राप्त सभी कॉल पर घर पहुंच चिकित्सा सुविधाएं प्रदाय की जाए और एमवीयू में स्टॉफ के अभाव में विकासखण्ड स्तरीय चिकित्सालय के स्टॉफ को एमवीयू के साथ भेजकर पशुपालकों को चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करवाएं।

77 करोड़ सालाना है एंबुलेंस का खर्च

करोङों रुपए में खरीदी गई 406 पशु चिकित्सा एम्बुलेंस के संचालन में प्रतिवर्ष लगभग 77 करोड़ रूपए व्यय होंगे यह बात स्वयं शासन ने भी स्वीकार की थी। शासन के अनुसार इसमें केन्द्रांश एवं राज्यांश का अनुपात 60:40 होगा। एम्बुलेंस में पशु उपचार, शल्य चिकित्सा, कृत्रिम गर्भाधान, रोग परीक्षण आदि के लिए सभी संबंधित उपकरण मौजूद हैं। कुल मिलाकर चलता फिरता अस्पताल यदि योग्य चिकित्सक के साथ बीमार पशुओं तक पहुंचता तो कई गौवंशिय पशुओं को मरने से बचाया जा सकता था।


एक तरफ घटिया दवा की मार दूसरी तरफ नहीं मिल रहा उपचार


गौपालकों, गौ सेवकों, पशु चिकित्सकों के साथ गौशालाओं से जुड़े लोगों का भी कहना है एक तरफ कथित तौर पर घटिया दवाई की मार है तो दूसरी तरफ मूक पशुओं को अब उपचार भी नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि पहले पशुओं के आहार में बजट में की गई कटौती उसके बाद गुणवत्ता हीन दवाईयों का वितरण, कंपनी डिफाल्टर पाए जाने पर कार्रवाई के बजाए उसी कंपनी को ही प्रदेश भर में दवा वितरण का टैंडर लगातार दो वर्षों तक दिए जाने से अब भी कथित तौर पर उसी कंपनी की स्तरहीन दवाईयां खाकर पशु बीमार पड़ रहे हैं और दूसरी तरफ बीमार पशुओं के उपचार में कथित औपचारिक उद्घाटन का अड़ंगे के बाद अब बजट और डीजल के अभाव में पशु चिकित्सा एंबुलेंस सेवा गर्भ में दम तोड़ चुकी है। गौपालकों, गौ सेवकों, पशु चिकित्सकों के साथ गौशालाओं से जुड़े लोगों का कहना है कि उक्त तमाम विषम परिस्थितियां कहीं न कहीं करेला नीम चढ़ा की कहावत को चरितार्थ ही नहीं कर रहीं बल्कि यह भी प्रदर्शित कर रही हैं कि गौमाता महज चुनावी भाषणों में उपयोग में आने की वस्तुु बन कर रही गई हैं, वास्तव में सेवा के नाम पर कुछ नहीं हो पा रहा है।

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