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किसान से एक रुपए किलो प्याज खरीदा जा रहा है और बाजार में बिक रहा है 30 रुपए किलो

प्याज की सही कीमत नहीं मिलने से मायूस हो चुके हैं किसान

मुंबई -किसान से खरीदी गई प्याज और बाजार में ग्राहकों को भेजी गई प्याज के बीच में 30 गुना अंतर है। आखिर यह पैसा कहां जा रहा है। किसान खून के आंसू रोने को मजबूर क्यों है। किसान को लागत भी नहीं मिल रही है और मुनाफा कमाने वालों की तिजोरियां भरा रही हैं…. ऐसा क्यों हो रहा है… दैनिक भास्कर की विशेष रिपोर्ट में इस सच्चाई को बताया गया है…

17 फरवरी, 2023 की सुबह 8 बजे महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के बोरगांव में रहने वाले 65 साल के किसान राजेंद्र तुकाराम चव्हाण ने प्याज की 10 बोरियां एक पिकअप वैन में लादीं। 70 किलोमीटर दूर सोलापुर में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी प्याज मंडी पहुंचे। बोरियों में 512 किलो प्याज था। इसका भाव मिला 1 रुपए किलो या 100 रुपए क्विंटल।

प्याज के बदले 512 रुपए बने, लेकिन प्याज को मंडी लाने, ढुलाई और बोरे का खर्च आया 509 रुपए 51 पैसे। सारा हिसाब होने के बाद तुकाराम को घर ले जाने के लिए 2 रुपए 49 पैसे मिले। ये 2 रुपए भी चेक के जरिए मिले, जिसे कैश करवाने में 306 रुपए और खर्च करने होंगे।

ऐसी ही कहानी बंडू भांगे नाम के किसान की है। बीड जिले के दाउतपुर गांव में रहने वाले बंडू 1 फरवरी 2023 को 825 किलो प्याज लेकर सोलापुर मंडी पहुंचे थे। प्याज का भाव 1 रुपए किलो ही था। प्याज के बदले 825 रुपए बने।

तुलाई-ढुलाई और भाड़ा मिलाकर कुल 826 रुपए का खर्च आया। बंडू को 825 किलो प्याज के बदले जो रसीद मिली, उसके मुताबिक उन्हें जेब से एक रुपया मंडी वालों को देना था। यानी उन्होंने -1 रुपए की कमाई की। ये सब हो रहा था, तब मार्केट में प्याज का भाव 30 रुपए किलो था।

राजेंद्र तुकाराम चव्हाण को जिस 512 किलो प्याज के बदले में 2 रुपए मिले, वो उनकी महीनों की मेहनत थी। किसानों की आय दोगुना करने के सरकारी दावों के बीच मैं राजेंद्र से मिलने उनके गांव पहुंचा। सवाल यही था कि किसानों को अपनी प्याज के बदले कुछ नहीं मिल रहा, तो ये कौन सा सिस्टम है, जिससे वो आम लोगों के घरों तक पहुंचने में 20 से 30 रुपए किलो हो जाती है। इसके अलावा अब राजेंद्र चव्हाण और बंडू भांगे क्या करेंगे…

मुंबई से 420 किलोमीटर दूर बोरगांव तक पहुंचने के लिए एक कच्ची सड़क है। कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है। बार्शी से तुलजापुर के रास्ते पर उपले दुमाला गांव पहुंचने के बाद मैं 5 किलोमीटर पैदल चलकर किसान राजेंद्र चव्हाण के घर पहुंचा।

गांव के बाहरी हिस्से में खेतों के बीच उनका इकलौता मकान है। आधा बना हुआ, बिना प्लास्टर का घर। घर के बाहर एक पेड़ के नीचे राजेंद्र चव्हाण बैलों को चारा खिला रहे थे। इसके ठीक बगल में कई क्विंटल प्याज पड़ा था, उसमें से सड़ने की बदबू आ रही थी।

राजेंद्र चव्हाण के घर के बाहर कई क्विंटल प्याज पड़ा है। इसे बेचने की बजाय उन्होंने सड़ने के लिए छोड़ दिया, ताकि उसे खाद की तरह इस्तेमाल कर सकें।
राजेंद्र चव्हाण के घर के बाहर कई क्विंटल प्याज पड़ा है। इसे बेचने की बजाय उन्होंने सड़ने के लिए छोड़ दिया, ताकि उसे खाद की तरह इस्तेमाल कर सकें।


रातों को जाग-जागकर फसल उगाते हैं, अब सड़ने के लिए छोड़ना पड़ा


राजेंद्र चव्हाण ने बताया कि मंडी में प्याज की कीमत इतनी कम है कि वहां जाने के बाद हमें जेब से पैसे देने पड़ रहे हैं। इशारे से बची हुई प्याज को दिखाते हुए बोले, ‘अब इसे कहीं नहीं ले जा रहे। सड़ने के लिए घर के बाहर फेंक दिया है। ये खाद में बदल जाएगा, तो इसे खेतों में डाल देंगे।’

फिर निराशा से कहते हैं, ‘इसे उगाने के लिए कई रातें जागकर बितानी पड़ीं, अब उसे फेंकने के अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा।’ उनकी आंखों में मुझे आंसू नजर आते हैं, वे अपने गमछे से उन्हें पोंछने लगते हैं।

मैंने 17 फरवरी की घटना पर सवाल किया तो तुकाराम ने बताया, ‘हमने मृगशिरा नक्षत्र (जनवरी की शुरुआत) में प्याज की फसल लगाई थी। पूरे परिवार ने मेहनत की। जमीन से निकालने के बाद इसे लेकर सोलापुर मंडी गया था। प्याज उगाने में 12-13 हजार का खर्च आया, लेकिन मेरा प्याज 100 रुपए क्विंटल के हिसाब से बिका। इतनी मेहनत के बदले, मुझे सिर्फ 2 रुपए का चेक मिला।’

राजेंद्र चव्हाण बताते हैं, ‘प्याज की बोली सूर्या ट्रेडर्स के लोगों ने लगाई थी। 512 किलो प्याज के बदले में 512 रुपए बने थे। हम्माली (मजदूरी) 40 रुपए 45 पैसे, तुलाई 24 रुपए 6 पैसे, मोटर भाड़ा (ट्रांसपोर्ट) 430 रुपए और बाकी खर्च 15 रुपए मिलाकर टोटल 509 रुपए 51 पैसे हो गए। 512 रुपए में से घटाने के बाद सूर्या ट्रेडर्स ने मुझे दो रुपए का चेक दे दिया।’

2 रुपए का चेक कैश कराने के लिए 306 रुपए देने होंगे


राजेंद्र चव्हाण कहते हैं, ‘घर में पत्नी, दो बेटे, बहू और पोते-पोतियां हैं। मेरा घर खेती से चल रहा है। हमारी महीनों की मेहनत के बदले 2 रुपए का चेक पकड़ा दिया। इसे कैश कराना हो तो मंडी के बैंक में ही कराना होगा। वो बैंक गांव से 70 किलोमीटर दूर है और वहां जाने-आने का खर्च ही 300 रुपए है।’

‘बैंक में KYC के लिए आधार कार्ड, पैन कार्ड और बैंक पासबुक की फोटो कॉपी लगती है। 6 रुपए इसमें भी लगेंगे। इन 2 रुपयों के लिए भी मुझे पहले 306 रुपए खर्च करने पड़ेंगे।’

राजेंद्र चव्हाण मंडी के सिस्टम पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘ये जो चेक मिलता है, वो भी 15 दिन बाद ही कैश कराया जा सकता है। आप बताओ कि अगर कोई इमरजेंसी आ जाए, तो हम अपने पैसे ही नहीं निकाल सकते। अनाज के लिए जब मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) है, तो सब्जियों के लिए क्यों नहीं?’

हालांकि, महाराष्ट्र सरकार ने इस साल प्याज की कम कीमतों को देखते हुए किसानों को एक क्विंटल पर 350 रुपए की सब्सिडी देने का ऐलान किया है, लेकिन तुकाराम को इसका भी फायदा नहीं होगा, क्योंकि ये सिर्फ मार्च और अप्रैल में प्याज बेचने वालों को ही मिलेगी।

‘ऐसा ही चलता रहा, तो अब प्याज की खेती नहीं करूंगा’


राजेंद्र चव्हाण बोलते-बोलते गुस्से में आ जाते हैं, कहते हैं, ‘ऐसे ही प्याज के भाव मिले, तो अब मैं आगे इसकी खेती नहीं करूंगा। मुझे मुआवजा नहीं चाहिए, मैं चाहता हूं कि प्याज का मिनिमम प्राइस 20-25 रुपए प्रति किलो तय कर दिया जाए। ज्यादातर किसानों ने अपना प्याज दिसंबर, जनवरी में ही बेच दिया था। सरकार अब सब्सिडी दे रही है, इसका फायदा किसानों को नहीं मिलने वाला।’

2 रुपए का चेक मिलने से नाराज राजेंद्र चव्हाण गांव के कुछ किसानों के साथ कस्बे के मेन मार्केट में तीन दिन तक भूख हड़ताल पर भी बैठे। कुछ रिपोर्टर आए और कुछ लोकल नेता। मदद किसी ने नहीं की, जब भूख से हालत बिगड़ने लगी तो भूख हड़ताल खत्म करनी पड़ी।
साभार : दैनिक भास्कर

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