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पदोन्नति पर रोक के कारण मध्‍यप्रदेश के अधिकारी और कर्मचारी सरकार से नाराज

पदोन्नति शुरू करने के सरकार के प्रयास भी कारगर नहीं हो रहे हैं

भोपाल – पदोन्नति पर रोक के कारण मध्‍य प्रदेश के अधिकारी और कर्मचारी सरकार से नाराज हैं। उन्हें मनाने की तमाम कोशिशें बेकार साबित हो रही हैं। वहीं पदोन्नति शुरू करने के सरकार के प्रयास भी कारगर नहीं हो रहे हैं। सरकार पिछले डेढ़ साल से पदोन्नति के नए नियम बना रही है।

आरक्षित और अनारक्षित पक्ष के अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ कई दौर की बैठक हो चुकी है। दोनों पक्षों को सुनकर अंतिम अनुशंसा करने के लिए मंत्रिपरिषद की समिति बनाई है पर कोई हल नहीं निकला। नए पदोन्नति नियमों को लेकर दोनों पक्ष एकमत नहीं हैं इसलिए प्रदेश में कर्मचारियों की पदोन्नति का रास्ता नहीं खुल पा रहा है।

सरकार चाहती है कि विधानसभा चुनाव से पहले इस समस्या का हल निकल जाए, ऐसा नहीं होता है तो चुनाव में खासकर अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों और उनके परिवारों की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा। कर्मचारी सात साल से इसके दुष्परिणाम भुगत रहे हैं।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को ‘मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002’ खारिज कर दिया था। इस निर्णय के विरुद्ध राज्य सरकार हाई कोर्ट चली गई और कोर्ट ने मई 2016 में प्रकरण को यथास्थिति रखने के निर्देश दिए थे। तब से प्रकरण लंबित है और पदोन्नति पर रोक लगी है।
रोक की इस अवधि में 70 हजार से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। जिनमें से करीब 38 हजार को पदोन्नति नहीं मिली है। लंबी न्यायालयीन लड़ाई के बाद आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी भी पदोन्नति शुरू करने पर सहमत हैं, पर अनारक्षित वर्ग नहीं चाहता है कि पुराने नियमों के आलोक में नए नियम बनाए जाएं।

सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था (स्पीक) के अध्यक्ष केएस तोमर कहते हैं कि नए नियम में कुछ भी नया नहीं है। उसमें पुराने नियमों को नए कलेवर में प्रस्तुत कर दिया गया है इसलिए वे हमें स्वीकार नहीं हैं। यदि सरकार एक पक्षीय निर्णय लेकर इन्हें लागू भी करती है तो हम न्यायालय में फिर से जाएंगे।

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