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मध्यप्रदेश में सिंधिया समर्थकों का पत्ता कटेगा, दलबदल करने वालों को जनता पसंद नहीं कर रही

कर्नाटक चुनाव के बाद मध्यप्रदेश में सिंधिया समर्थकों के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह

भोपाल – कर्नाटक विधानसभा चुनाव के रिजल्ट का असर मध्यप्रदेश में भाजपा-कांग्रेस की चुनावी रणनीति पर पड़ना तय है। खासकर सत्ताधारी भाजपा पर। इसकी वजह यह है कि कर्नाटक सरकार के 25 में से 13 मंत्री चुनाव हार गए हैं। इतना ही नहीं, 2019 में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिराने वाले 14 में से 8 विधायकों को भी जनता ने नकार दिया है।
बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व भले ही राजनीति में परिवारवाद का विरोध करता है, लेकिन कर्नाटक में 20 से अधिक मंत्रियों, विधायकों व सांसदों के बेटे-बेटियों सहित अन्य रिश्तेदारों को चुनाव मैदान में उतारा गया। परिणाम यह हुआ कि ऐसे 15 कैंडिडेट चुनाव हार गए।
जानकार मानते हैं कि कर्नाटक और मध्यप्रदेश के राजनीतिक हालात एक जैसे हैं। जिस तरह 2019 में कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिरी थी, ठीक एक साल बाद मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार सिंधिया और उनके समर्थकों की बगावत की वजह से सत्ता से बाहर हो गई थी। इसलिए सिंधिया समर्थकों को लेकर भाजपा में मंथन चल रहा है। सिंधिया समर्थक विधायकों को तीन तरफ से खतरा है। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं उन्हें सबक सिखाने के लिए तैयार हैं। जनता भी दल बदलू विधायकों के प्रति अच्छी राय नहीं रखती है। और उधर भाजपा के पुराने कार्यकर्ता हाशिए पर धकेले जाने के कारण हिसाब चुकता करने का मौका तलाश रहे हैं। सिंधिया के कहने पर बगावत करने वाले कई विधायकों को उपचुनाव में ही जनता ने धूल चटा दी है। अब 2023 में बाकी विधायकों के लिए मुश्किल का समय है। ऐसे में भाजपा संगठन सिंधिया के गुट वाले कुछ विधायकों की टिकट काटने पर भी विचार कर रहा है।

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