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मालवा की 38 विधानसभा सीटों पर भाजपा के लिए संकट के बादल

भाजपा के असंतुष्ट और बागी नेता बन सकते हैं पूरी हार का कारण

भोपाल – मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव को अब बमुश्किल 8 महीने ही बचे हैं, ऐसे में भाजपा और कांग्रेस ने अभी से प्रत्याशियों के चयन पर काम शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि इस बार कांटे की टक्कर रहने वाली है। लिहाजा दोनों पार्टियों को लग रहा है कि सही कैंडिडेट चयन ही जीत का आधार बनेगा। दोनों पार्टियों ने इसके लिए गोपनीय स्तर पर सर्वे कराए हैं। जमीनी स्तर पर दावेदारों की सक्रियता भी दिखाई देने लगी है। भाजपा को उन सीटों पर कैंडिडेट तय करने में मुश्किल होगी, जहां सिंधिया समर्थक कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए हैं।
मालवा की 38 में से 24 सीटों पर फिलहाल भाजपा के विधायक हैं। कांग्रेस के 13 और एक सीट पर निर्दलीय MLA है। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद 18 सीटें कांग्रेस को मिली थीं, वहीं तब बीजेपी को 19 सीटें ही मिली थी। लेकिन मार्च 2020 में तुलसी सिलावट (सांवेर), मनोज चौधरी (हाटपीपल्या), हरदीप सिंह डंग (सुवासरा) और राजवर्धन सिंह दत्तीगांव (बदनावर) ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। इसके बाद हुए उपचुनाव में ये सभी बीजेपी के सिंबल पर जीतकर फिर विधानसभा में पहुंचे। भाजपा के लिए बड़ा संकट यहीं पैदा हो रहा है। यहां नए बनाम पुराने कार्यकर्ताओं के बीच टिकट का बंटवारा आसान नहीं होगा। यहां पार्टी को असंतुष्टों को अपने साथ रखना और भितरघात रोकना बड़ी चुनौती होगी। कांग्रेस की लगभग हर सीट पर युवा कैंडिडेट दावा करने लगे हैं।

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