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650 करोड़ से ज्यादा खर्च हो गए न शिप्रा निर्मल हुई, न सदानीरा

अगले सिंहस्थ में पांच साल बचे, लेकिन सरकार की योजना अब भी नर्मदा जल में स्नान करवाने की

भोपाल- 21 वर्ष, 2004 और 2016- दो सिंहस्थ। हर बार नई शपथ। अगले सिंहस्थ तक हम मोक्षदायिनी शिप्रा को जीवंत कर लेंगे। शिप्रा के जल को प्रदूषण से मुक्त कर लिया जाएगा। इस बीच कई योजनाएं बनीं और 650 करोड़ से ज्यादा खर्च हो गए। अगले सिंहस्थ में पांच साल बचे हैं लेकिन सरकार की योजना अब भी नर्मदा जल में स्नान करवाने की है। इसके विपरीत पूरे देश के साधु-संत सरकार के भरोसे बैठे हैं कि शिप्रा को शुद्ध किया जाएगा और इसके अमृततुल्य जल में सिंहस्थ के दौरान स्नान कर सकेंगे।
हाल ही में कान्ह के पानी को डायवर्ट करने की 600 करोड़ की योजना के टेंडर हुए तो फिर संत बोल उठे कि शिप्रा को शुद्ध करने जरूरत है न कि कान्ह को डायवर्ट करने की। यह भी कि इंदौर में कान्ह नदी के शुद्धिकरण के लिए नमामि गंगे योजना के तहत केंद्र ने 511 करोड़ की योजना को मंजूरी दे दी है। तीन बड़़े सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट इसके तहत बनेंगे। चूंकि कहान नदी सीधे शिप्रा में मिलती है। शिप्रा चंबल में और चंबल गंगा में। इसलिए गंगा सफाई मिशन में इसे शामिल कर लिया है। जाहिर है शिप्रा को भी इसमें शामिल किया जाना जरूरी है।
जानकारों के मुताबिक चूंकि यह योजना कान्ह को इंदौर नगर निगम क्षेत्र में शुद्ध कर देगी लेकिन इसके आगे कान्ह में इंदौर, देवास और उज्जैन जिले के उद्योगों का पानी भी मिलता है। इस क्षेत्र के लिए अलग योजना बनाना जरूरी है। यहीं आकर अफसरों ने चूक कर दी। उज्जैन तक आते समय कान्ह का पानी प्रदूषित हो जाता है।
ऐसे में पिछले सिंहस्थ के पहले 89 करोड़ खर्च कर पाइप लाइन बिछा कर कान्ह के पानी को उज्जैन के बाहर शिप्रा में छोड़ा जाने लगा। कुछ सालों में पाइप लाइन कई जगह धंस गई। कान्ह में पानी का फ्लो भी लगातार बढ़ता गया। यानी पाइपलाइन छोटी पड़ गई। 89 करोड़ पानी में चले गए।
सभी साधु-संतों में समन्वय बनाने वाली शीर्ष संस्था अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष संत रवींद्र पुरी जी महाराज कहते हैं कि नर्मदा नदी को हम देवी मानते हैं लेकिन सिंहस्थ की परंपरा शिप्रा से ही है। जिन शिवराज ने महाकाल लोक बनाने जैसा पुण्य कार्य किया है हमें उनसे उम्मीद है कि वे शिप्रा को जीवंत भी करेंगे और उसका जल भी सिंहस्थ के पहले शुद्ध होगा ताकि धर्म-परंपरा की रक्षा हो सके।
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के पूर्व भू-जल वैज्ञानिक देवेंद्र जोशी ने बताया कि शिप्रा को जीवंत करने के लिए योजना नवंबर 2016 को बोर्ड ने सरकार को सौंपी थी। उस पर काम शुरू ही नहीं हो पाया। उस समय सरकार ने और भी ऐसी रिपोर्ट बनवाई होंगी।
उन्होंने भास्कर के साथ यह रिपोर्ट शेयर की। इसके मुताबिक आईआईटी रुढ़की ने शिप्रा को लेकर मॉडलिंग की थी। इसमें सामने आया कि 2006 के बाद शिप्रा का प्रवाह बंद हो गया। शिप्रा सितंबर में सूख जाती है। शिप्रा के कैचमेंट एरिया में नरवर वॉटरशेड की तरह काम करने की जरूरत है। इसमें स्ट्रक्चर बनाने पड़ेंगे।

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