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भाजपा सरकार जनता से माफी माँगे और राष्ट्रीय शोक घोषित किया जाए- साध्वी ऋचा गोस्वामी और जेपी धनोपिया

  • कांग्रेस के धर्म एवं उत्सव प्रकोष्ठ की अध्यक्ष साध्वी ऋचा गोस्वामी और प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं सभी प्रकोष्ठ के प्रभारी जेपी धनोपिया की संयुक्त पत्रकार वार्ता

भोपाल. कांग्रेस के धर्म एवं उत्सव प्रकोष्ठ की अध्यक्ष साध्वी ऋचा गोस्वामी और प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं सभी प्रकोष्ठ के प्रभारी जेपी धनोपिया की संयुक्त पत्रकार वार्ता ने कहा कि क्या ऐसे बनेगा हिन्दू राष्ट्र ? ब्रिटेन की महारानी के निधन पर सऊदी अरब के सुल्तान शाह अब्दुल बिन अब्दुल अजीज के निधन पर यू.ए.ई. के शेख खलीफा के निधन पर भारत में 1 दिन का राष्ट्रीय शोक रखा जाता है पर वैदिक सनातन धर्म के सर्वोच्च पद पर आसीन रहे द्विपीठाधीश्वर शंकराचार्य देश के सबसे बड़े आध्यात्मगुरू के लिए आपने राष्ट्रीय शोक क्यों नहीं रखा ? और तो और निर्लज्जता की हद तब हुई जब महाराज जी के निधन से सारा व्याकुल हो रहा था तब उन्हीं के जिले नरसिंहपुर के करेली में भाजपा का देश सम्मान समारोह मनया जाता रहा। मानवता के नाते सही भाजपा इस कार्यक्रम को स्थगित कर सकती थी। इतनी संवेदनहीनता का परिचय भाजपा देगी।

भाजपा को क्या करना चाहिए

मैं अपने म.प्र. कांग्रेस धर्म एवं उत्सव प्रकोष्ठ से समस्त भारत के साधु समाज से, भारतीय जन समुदाय की ओर से भाजपा सरकार से आवाहन करती हूँ जो आपने विश्व के आध्यात्म गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के देहावसान होने पर शंकराचार्य पद की गरिमा का मान नहीं रखा उसके लिए भारत की जनता से माफी माँगे और राष्ट्रीय ध्वज झुकाया जाय / राष्ट्रीय शोक घोषित किया जाय। और सम्मानस्वरूप शंकराचार्यजी का स्मारक बनवाया जाय । भाजपा ने विश्व में सनातन धर्म समुदाय को गहरा आघात पहुँचाया है। भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा अपने पद के दायित्वों का भी निर्वहन नहीं किया गया। अब भी निर्लज्जता होगी यदि भारत के जनसमुदाय तक पहुँचने के बाद भी कोई ठोस कदम सरकार नहीं उठाती है। की आवाज सरकार अनेक विद्यालय, हॉस्पीटल, अन्नक्षेत्र संचालित करने वाले आदिवासियों, दलितों पिछड़ों के लिए बिना भेद भाव के सर्वधर्म का पोषण करने वाले महान व्यक्तित्व के सम्मान को ध्यान न दे कर भारत सरकार व राज सरकार द्वारा जो उदासीनता दिखाई गई उसका निर्णय जनता करेगी।

  1. शंकराचार्य पद व परम्परा की महत्ता :

भगवन् आद्यशंकराचार्य व उनकी चार पीठों का भारत की एकता अखण्डता व अक्षुष्णता में महान योगदान रहा है। आज जो भारत की इतनी बड़ी विशाल भूमि बची हुई है उसमें आदि शंकराचार्य एवं परवर्ती शंकराचार्यों का योगदान नहीं नकारा जा सकता ।

भगवान आद्यशंकराचार्य जी ने जब भारत में विद्यर्मीयों का बोलवाला था तब 8वीं शताब्दी में वैदिक सनातन धर्म की पुनर्स्थापना करने के लिए नागा सन्यासी एवं दशनामी गोस्वामीयों की सेना को खड़ा किया था । दशनागियों के सात अखाड़े बनाए और इनका नेतृत्व करने के लिए भारत के चार कोनों में; पश्चिम में द्वारकाशारदा पीठ, उत्तर में ज्योतिर्मठ बदीनाथ, पूर्व में गोवर्धन मठ जगन्नाथपुरी दक्षिण में श्रृंगेरी मठ रामेश्वर क्षेत्र की स्थापना की । हिंदु सनातन धर्म में शंकराचार्य सर्वोच्च पद है। आद्य शंकराचार्य जी ने अपने ही समान सुयोग्य, ज्ञानी, सिद्ध, योगी शिष्यों को धर्म की रक्षा के लिए नियुक्त किया और सनातनधर्मावलम्बियों को यह आदेश दिया कि जो मेरे द्वारा स्थापित चार पीठों पर आरूढ़ होगें उन्हें मेरा ही स्वरूप माना जाए।

जैसे प्रजा की व्यवस्था के लिए राजा दण्ड और कर ग्रहण करते है व, राजचिन्ह छत्र, सिंहासन, छड़ी चवर इनसे सुशोभित होते हैं

और लोक व्यवस्था में राजा सर्वोपरि होते है ठीक वैसे ही शंकराचार्य को धर्मव्यवस्था के संचालन कार्य में धर्मसम्राट मानकर जोचित व्यवहार राज चिन्हों से विभूषित किया जाए और प्रजा उनका धर्मानुशासन माने।1200 वर्ष से चली आ रही शंकराचार्य परम्परा के एकमात्र द्विपीठाधीश्वर शंकराचार्य रहे हमारे पूज्य गुरूदेव अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज धर्मानुशासन करने में अविस्मरणीय योगदान रहा है। का

  1. स्वामी स्वरूपानंद जी का महत्व

आज भारत को जो स्वतंत्रता मिली है उसमें महाराज श्री का अविस्मरणीय योगदान रहा है। 19 वर्ष की अवस्था में कांतिकारी साधु के रूप में स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष करते हुए वाराणसी में 9 माह व मध्यप्रदेश में 6 माह महाराजश्री जेल में ही गुजारे। गोवध के विरोध में धर्मसम्राट् परम पूज्य श्री करपात्री जी महाराज के द्वारा जो सबसे बड़ा आंदोलन देश में हुआ था उसमें स्वामी स्वरूपानंद जी ने कंधे से कंधे मिलाकर सहयोग प्रदान किया था। सर्वप्रथम भारत में रामराज्य की परिकल्पना करने वाले रामराज्य परिषद् के महाराजश्री अध्यक्ष थे।

नेपाल नरेश वीर विक्रम शाह ने अपने पुत्र के यज्ञोपवीत के लिए व दीक्षा देने के लिए स्वामी स्वरूपानंद जी को आमंत्रित किया था । जब वे नेपाल गए उनका नेपाल नरेश द्वारा खूब सम्मान हुआ पादुका पूजन विधिवत् की गई। नेपाल नरेश पुत्र को दीक्षा देने के बाद जब नेपाल नरेश उन्हें गुरु दक्षिणा देने लगे तब महाराज जी ने कहा “आप सदा भारत के साथ रहेगें और कभी चीन के पक्ष में नही जाएगें यही मेरी सच्ची गुरूदक्षिणा आप मुझे वचन में दीजिए। ऐसे आद्य शंकराचार्य जो दो-दो पीठों के संवाहक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, महान योगी, लाखों-करोड़ो सनातन धर्मानुयायियों के मार्गदर्शक, महान् त्यागी अद्वितीय महापुरूष के निधन पर भारत सरकार एवं प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय शोक घोषित कर जो सम्मान महाराजश्री का किया जाना चाहिये था उसमें सरकार ने बहुत बड़ी चूक की है।शतायु आयुवृद्ध, ज्ञानवृद्ध, योगवृद्ध तपोवृद्ध परमकारुणिक महापुरूष का आप यथोचित सम्मान नहीं कर पाए इसके लिए भाजपा को कभी भी श्रद्धालु धर्मप्रेमी व भारत और प्रदेश की जनता क्षमा नहीं करेगी

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