You are here
Home > News > कांग्रेस ने दलबदलुओं के रेट कार्ड जारी किए

कांग्रेस ने दलबदलुओं के रेट कार्ड जारी किए

भोपाल। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आए दलबदलू विधायकों का मुद्दा बीजेपी की दुखती रग बन गया है। और लोग हैं कि उसकी इस दुखती रग को बार-बार छेड़ देते हैं। ताज़ा मामला सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक रेट कार्ड से जुड़ा है। इस रेटकार्ड में दल-बदलू विधायकों पर न सिर्फ मासूम जनता के वोट बेचने का आरोप लगाया गया है, बल्कि ये दावा भी किया गया है कि उन्हें इसके लिए कितनी रकम मिली है।

प्रति वोट दर का फॉर्मूला

इतना ही नहीं, रेट कार्ड में वोट बेचने से मिली कथित रकम को पिछले चुनाव में मिले वोटों की संख्या से भाग देकर प्रति वोट दर भी निकाली गई है। यह रेट कार्ड इस संदेश के साथ वायरल हो रहा है कि दल-बदलू नेताओं को पार्टी बदलने के एवज में मिली रकम प्रति वोट दर के हिसाब से मतदाताओं में बांटी जानी चाहिए। कई दल-बदलुओं के नाम से ऐसे ही रेट कार्ड वायरल हो रहे हैं। हर कार्ड में उस दल-बदलू पर लागू होेने वाली प्रति वोट दर दी गई है। मिसाल के तौर पर एक नेता के लिए प्रति वोट दर अगर 6324 रुपये दी गई है, तो इसका मतलब ये हुआ कि उस पूर्व विधायक को अपने हर वोटर को इतनी ही रकम अदा करनी चाहिए। 

जाहिर है, जिसने भी ये रेट कार्ड बनाए हैं, उसने न सिर्फ दल-बदल की प्रवृत्ति पर तीखा व्यंग्य किया है, बल्कि इसे तैयार करने में अच्छी-खासी मेहनत भी की है। हंसी-मज़ाक के अंदाज़ में ही सही, लेकिन इसे बनाने वाले की दलील बिलकुल साफ है – अगर किसी नेता ने आपके वोट से मिली विधायकी बेचकर नोट कमाए हैं, तो दरअसल उसने आपके वोटों का ही सौदा किया है। और कमाई अगर आपके वोट बेचकर हुई है, तो उसमें आपका हिस्सा भी होना चाहिए। है न मज़ेदार दलील! 

दलील तो मज़ेदार है पर सब नहीं ले सकते मज़ा 

वैसे ये दलील कितनी भी मजेदार हो, बीजेपी इसका मज़ा नहीं ले पा रही। उसे गुस्सा आ रहा है। इतना गुस्सा कि इस कार्ड की शिकायत उसने चुनाव आयोग तक से कर डाली। हालांकि इस रेट कार्ड पर ये जानकारी तो कहीं नहीं दी गई है कि इसे किसने बनाया है, लेकिन बीजेपी इसके लिए कांग्रेस और उसके दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को घेरने की कोशिश कर रही है। बीजेपी का कहना है कि दिग्विजय सिंह ने इस रेट कार्ड को सोशल मीडिया पर शेयर करके चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन किया है। 

एतराज़ भले हो, घबराएं बिलकुल नहीं

वैसे इस रेट कार्ड की बातों से किसी को चाहे कितना भी एतराज़ क्यों न हो, इससे घबराने की ज़रूरत किसी को नहीं है। वो इसलिए कि इस पर चुटकी चाहे जितनी ली जाए और रेट कार्ड बनाने वाले ने प्रति वोट भुगतान की दलील चाहे कितनी भी मज़ेदार बनाई हो, उस पर अमल की नौबत नहीं आने वाली।

ऐसा इसलिए क्योंकि किस मतदाता ने किसे वोट दिया, ये जानकारी तो गोपनीय होती है। इसका मतलब समझे आप? मतलब ये कि कोई मतदाता अपने किसी पूर्व विधायक के दरवाजे पर पहुंचकर ये मांग नहीं कर सकता कि ओ हमारे दल-बदलू नेताजी, हमने भी आपको वोट दिया था, तो रेट कार्ड के हिसाब से निकालो हमारे पैसे! और अगर कभी कह भी दे, तो दल-बदलू जी फौरन पलटकर पूछ सकते हैं…कहां है इस बात का सबूत कि तुमने हमें वोट दिया था। तो लीजिए, हो गई ना सारी टेंशन दूर! 

ये बात अगर अच्छी तरह समझ लें तो शायद उनका भी डर दूर हो जाए और उस डर से उपजा गुस्सा भी। लेकिन डर अगर पैसे लौटाने का नहीं, मतदाताओं के गुस्से का है, तो अलग बात है। और ऐसे डर का इलाज़ तो शायद हकीम लुकमान के पास भी नहीं होगा!

Leave a Reply

Top