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मध्यप्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस विधायक एनपी प्रजापति ने विधानसभा सत्र बुलाने की मांग की

मध्य प्रदेश विधानसभा का अगला सत्र 23 सितंबर से पहले होना जरूरी है, लेकिन अब तक इस संबंध में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इस संबंध में विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस विधायक एनपी प्रजापति ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर छह महीने के भीतर विधानसभा का दूसरा सत्र बुलाने की संवैधानिक बाध्यता बताते हुए विधानसभा सत्र तुरंत बुलाने की मांग की है।

मुख्यमंत्री चौहान द्वारा 24 से 27 मार्च तक के लिए विधानसभा का सत्र बुलाया था, जिसमें उन्हें बहुमत साबित करना था। कोरोना संक्रमण के कारण यह संक्षिप्त सत्र चार बैठकों का बुलाया था। इसमें विपक्षी दल कांग्रेस के सदस्य नहीं पहुंचे और नौ मिनट में शिवराज सिंह चौहान ने बहुमत साबित करने के बाद सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया था। इसके बाद 20 से 24 जुलाई तक के लिए मानसून सत्र बुलाया गया था, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से सर्वदलीय बैठक में इसे निरस्त कर दिया गया।

अब मध्य प्रदेश विधानसभा के सामने संवैधानिक संकट है, क्योंकि छह महीने (23 सितंबर) के भीतर विधानसभा का सत्र बुलाया जाना जरूरी है। अब तक विधानसभा की पांच बैठकें ही हुईं राजनीतिक परिस्थितियों और कोरोना महामारी के कारण मध्य प्रदेश के संसदीय इतिहास में इस बार विधानसभा की सबसे कम पांच बैठकें हो सकी हैं।

दो बैठकें कमल नाथ सरकार के कार्यकाल में 16 व 17 जनवरी और 16 व 20 मार्च को हुई थीं। इसके बाद शिवराज सरकार ने बहुमत साबित करने के लिए 24 मार्च को बैठक की थी। इससे पहले मध्य प्रदेश विधानसभा के इतिहास में 1993 में छह बैठकें हुई थीं, लेकिन तब राष्ट्रपति शासन के बाद केवल दिसंबर में ही विधानसभा का सत्र हुआ था। सवाल पूछने से वंचित रह जाएंगे विधायक विधानसभा सत्र की अधिसूचना यदि विलंब से जारी होगी तो विधायकों को जनहित के मुद्दों पर सवाल लगाने का वक्त नहीं मिल पाएगा।

विधानसभा सत्र बुलाए जाने से लगभग एक महीने पहले राज्यपाल द्वारा विधानसभा सत्र की अधिसूचना जारी की जाती है। इसमें अधिकृत तौर पर बैठकों की संख्या भी शामिल होती है। इसके बाद विधानसभा सचिवालय द्वारा कम से कम 15 दिन पहले तक विधायकों के लिए विभागवार तारीख जारी की जाती हैं। इन तारीखों में विधायक अपने सवाल दाखिल कर सकते हैं, लेकिन अल्प सूचना मिलने पर विधायकों को सवाल लगाने का मौका नहीं मिल पाएगा।

दो सत्र के बीच छह महीने से कम समयावधि हो

संविधान में यह व्यवस्था है कि विधानसभा के दो सत्रों के बीच छह महीने से ज्यादा का समय नहीं हो सकता। छह महीने में संक्षिप्त सत्र भी बुलाया जा सकता है। मौजूदा संचार साधनों से विधायकों को सूचना दी जा सकती और कुछ घंटे पहले भी अधिसूचना जारी की जा सकती है। मगर छह महीने के पहले सत्र बुलाया जाना अनिवार्य है।

– सुभाष कश्यप, पूर्व महासचिव, लोकसभा

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