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कितनी सफल होगी यह, कांग्रेस की महत्वाकांक्षी 150 दिवसीय ‘भारत जोड़ो यात्रा’ जारी है

विगत सात सितंबर से कांग्रेस की महत्वाकांक्षी 150 दिवसीय ‘भारत जोड़ो यात्रा’ जारी है। इस पदयात्रा का नाम भले ही ‘भारत जोड़ो’ है, किंतु यह संकटग्रस्त कांग्रेस में जान फूंकने और पार्टी में गांधी परिवार के नियंत्रण को फिर से मजबूत करने का प्रयास है। देश ने ‘राजनीतिक यात्राओं’ के लाभ देखे हैं। जहां 1990 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी द्वारा निकाली गई ‘राम रथयात्रा’ से पार्टी कालांतर में दो से 182 लोकसभा सीटों तक पहुंच गई, वहीं 2018 में वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष जगन मोहन रेड्डी ने ‘प्रजा संकल्प यात्रा’ निकालकर आंध्र प्रदेश में सरकार बना ली। ऐसे कई उदाहरण हैं। परंतु क्या कांग्रेस अपनी इस पदयात्रा में सफल होगी? ऐसा संभव नहीं दिखता, क्योंकि जहां अन्य राजननीतिक यात्राओं में नेताओं की विचारधारा और यात्रा के घोषित उद्देश्यों में स्पष्ट साम्य था, वहीं कांग्रेस की इस यात्रा में इसका नितांत अभाव है।

पिछले दो दशकों से कांग्रेस और माता-पुत्र की जोड़ी को अलग करके नहीं देखा गया है, और बीते कई दशकों से पार्टी अपनी मूल विचारधारा से अलग है। बौद्धिक कमी पूरी करने और स्वयं को भाजपा से अलग दिखाने के लिए वह बार-बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ उन बयानों का जिक्र करती है, जिस पर वामपंथियों का एकाधिकार रहा है। कम्युनिस्ट प्रारंभ से संघ और समानार्थी विचारसमूह के अन्य संगठनों-व्यक्तियों के राष्ट्रवादी चरित्र और सनातन संस्कृति के प्रति कटिबद्ध होने के कारण उनसे घृणा करते हैं। केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल के वामपंथी शासन में विचारधारा के नाम पर दर्जनों भाजपा-संघ कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्या—इसका प्रमाण है। लगभग एक ही कालखंड (1925) में संगठनात्मक जीवन शुरू करने के बाद जहां संघ समाज में विस्तार कर रहा है, वही वामपंथी केवल केरल तक सिमट गए है। 

यह विडंबना है कि जिस वामपंथ का वैचारिक अधिष्ठान विश्व में पहले ही दम तोड़ चुका है, उसकी घटिया कार्बन-कॉपी बनकर कांग्रेस देश में प्रासंगिक रहना चाहती है। कांग्रेस का घटता जनाधार उसकी इसी वैचारिक उलझन का प्रमाण है, जिसमें संघ के प्रति अपनी घृणा को मुखर रखने हेतु उसने ‘जलती खाकी निक्कर’ की तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की, किंतु ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की शुरुआत प्रख्यात आरएसएस विचारक एकनाथ रनाडे के मौलिक विचार ‘विवेकानंद स्मारक शिला’ (कन्याकुमारी) में श्रद्धांजलि देकर की। भारतीय सनातन परंपरा के अनुरूप इसमें कोई बुराई नहीं, किंतु जिस वामपंथी केंचुली से कांग्रेस दशकों से जकड़ी हुई है, उसमें संघ-भाजपा और अन्य वैचारिक विरोधियों के प्रति केवल ‘राजनीतिक अस्पृश्यता’ का दर्शन है।

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