मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक विधायक भगवान श्री राम के नाम पर वोट मांग रहे Politics by mpeditor - September 22, 2020September 22, 20200 मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया का जादू खत्म होता जा रहा है। भले ही उनके कहने पर मध्य प्रदेश के कुछ विधायक इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हो परंतु उपचुनाव में ना तो उन्हें खुद पर भरोसा है और ना ही ज्योतिरादित्य सिंधिया पर। नतीजा भगवान श्री राम के नाम पर वोट मांगे जा रहे हैं। मामला क्या है, गोविंद सिंह राजपूत की निंदा क्यों की जा रही है दरअसल, सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इस वीडियो में एक व्यक्ति गांव की अशिक्षित महिला को एक पोस्टर के जरिए समझा रहा है कि ‘यह रहे भगवान राम’ यह है नरेंद्र मोदी और यह रहे गोविंद भैया। मोदी जी राम मंदिर बना रहे हैं इसलिए सब फूल (भारतीय जनता पार्टी) में आ गए। अपने यहां एक वोट फूल (भाजपा) को देंगे, वहां राम मंदिर में 1 ईट लगेगी। पुण्य मिलेगा सो अलग। कांग्रेस का दावा है कि गोविंद सिंह राजपूत ने अपने कार्यकर्ताओं को इसी तरीके से वोट मांगने के लिए गांव-गांव भेजा है। कांग्रेस ने चुनाव आयोग से इसकी शिकायत भी की है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे नजदीकी मंत्री हैं गोविंद सिंह राजपूत मामला सागर जिले की सुरखी विधानसभा सीट का है। जहां से भारतीय जनता पार्टी की ओर से शिवराज सरकार में कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह राजपूत अधिकृत प्रत्याशी होंगे। गोविंद सिंह राजपूत अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया जी कितने नजदीक हैं, इसका अनुमान सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके पास परिवहन एवं राजस्व जैसे दो महत्वपूर्ण विभाग हैं। गोविंद सिंह राजपूत को चुनाव हारने का डर इस वीडियो के बाद क्यों ना यह मान लिया जाए कि कैबिनेट मंत्री श्री गोविंद सिंह को चुनाव हारने का डर सता रहा है। श्री गोविंद सिंह राजपूत 2003, 2008 और 2018 में विधायक चुने गए परंतु 2013 में पारुल साहू से चुनाव हार गए थे। तय माना जा रहा है कि इस बार गोविंद सिंह राजपूत भारतीय जनता पार्टी से और पारुल साहू कांग्रेस पार्टी से उम्मीदवार होंगे। शायद पारुल साहू के दल बदलने के कारण गोविंद सिंह राजपूत को चुनाव हारने का डर सताने लगा है। उन्हें ना तो स्वयं पर भरोसा रह गया है और ना ही अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पर। क्या गोविंद सिंह राजपूत को लगता है कि लोगों से भगवान के नाम पर वोट मांगने का रास्ता ही आखरी बचा है।