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भाजपा के वरिष्ठ नेताओं व अन्यों ने अधिकारियों से मिलकर व्यापमं घोटाला किया है तो (ई) मानदार कौन? असली दोषी बाहर क्यों? :के.के.मिश्रा

भोपाल। प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष के.के. मिश्रा ने व्यापामं महाघोटाले में मेडिकल कॉलेजों में हुई फर्जी भर्तियों में गत 6 दिसंबर 2022 को जांच एजेंसी एसटीएफ,भोपाल द्वारा दर्ज एक नई एफ आईआर में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं व अन्यों द्वारा अधिकारियों की मिलीभगत से किए गए घोटालों का जिक्र किए जाने को एक गंभीर मुद्दा बताया है। उन्होंने कहा कि उक्त विषयक घोटाले में इसकी जांच कर रही एजेंसी की यह स्वीकारोक्ति ने समूची भाजपा, प्रदेश सरकार के कथित (ई) मानदार चरित्र पर सवालिया निशान लगा दिया है?


आज जारी अपने बयान में मिश्रा ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री, मौजूदा राज्यसभा सदस्य श्री दिग्विजयसिंह की एक लिखित शिकायत के बाद एसटीएफ,भोपाल ने प्रकरण क्र.311/14 की लंबित जांचोपरांत भादवि की धारा – 419,420,467,468,471,120 B के तहत 8 लोगों के विरुद्ध प्रकरण दर्ज कर लिया है! मिश्रा ने कहा कि अब इस तथ्य को भी सार्वजनिक होना चाहिए कि इसमें इतना विलंब किसके दबाव में हुआ?


मिश्रा ने व्यापामं महाघोटाले को उजागर करते हुए लगाए गए अपने पूर्व पुख्ता आरोपों को आज पुनः दोहराते हुए कहा कि समूचे विश्व में देश को कलंकित कर देने वाला महाघोटाला सरकार के संरक्षण के बिना हो ही नहीं सकता है? उन्होंने सरकार से फिर पूछा है कि क्या :-


(1) मप्र उच्च न्यायालय के निर्देश पर तत्कालीन राज्यपाल के विरुद्ध एफआईआर नहीं हुई,उनके ओएसडी जेल नहीं गए?
(2) मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान के ओएसडी प्रेमप्रकाश,जो मुख्यमंत्री के शासकीय निवास पर ही रहते थे,के खिलाफ एफआईआर के उपरांत जिला न्यायालय,भोपाल से उन्हें जमानत नहीं मिली?
(3) शिवराज केबिनेट के तत्कालीन मंत्री स्व.लक्ष्मीकांत शर्मा,उनके ओएसडी लंबे समय तक जेल नहीं रहे?
(4) कई कनिष्ठ-वरिष्ठ आयएएस, आयपीएस अधिकारियों सहित उनके पुत्र-पुत्रियों ने इसमें गंगा स्नान नहीं किए?
(5)जब विभिन्न विशेष न्यायालयों द्वारा इस महाघोटाले में शामिल सैकड़ों अपात्रों,दोषी छात्रों -छात्राओं को सजाएं सुनाई जा रहीं हैं, यदि पैसा देकर प्रवेश / नियुक्ति पाने वाले जेल जा रहे हैं तो पैसा लेने वाले बाहर क्यों हैं?
(6) क्या यह भी झूठ है कि MCI के सचिव रहे यू.सी.उपरीत ने अपनी गिरफ्तारी के बाद अपने बयान में यह कहा था कि ” हम चिकित्सा शिक्षा मंत्री बनते ही उन्हें 10 करोड़ रु.भेज देते थे, उस वक्त चिकित्सा शिक्षा मंत्रालय का प्रभार किसके पास था?

 मिश्रा ने एक बार फिर गंभीर आरोप लगाया है कि उक्त बिंदुओं/ पदों में पर काबिज लोग ही पूरी सरकार के नियंत्रक/ संचालित करने वाले हैं, यही तो सरकार कही जाती है।लिहाजा,समूची सरकार ही इस महाघोटाले में शामिल है!
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