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आदिवासी एवं अन्य वनों में निवास करने वाले भाई-बहन भाजपा सरकार से त्रस्त्र: डॉ. एस.पी.एस. तिवारी

सरकार ने उनकी आजीविका के अधिकारों से किया उन्हें वंचित, आदिवासी युवाओं में भारी आक्रोश, परिवर्तन की पुकार

भोपाल – प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के निर्देश पर मप्र कांग्रेस वन एवं पर्यावरण प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. एस.पी.एस. तिवारी, के नेतृत्व में आदिवासी एवं वन क्षेत्र में वन अधिकार यात्रा 5 सितम्बर से 19 सितम्बर तक छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट, मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर, डिंडोरी, अनूपपुर, शहडोल, उमरिया, कटनी, सीधी, सिंगरौली, रीवा और सतना जिले की 36 विधानसभा में आयोजित की गई।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने 5 सितम्बर को वन अधिकार यात्रा का शुभारंभ छिंदवाड़ा जिले से यात्रा रथ को हरी झंडी दिखाकर किया। यात्रा में यात्रा के संयोजक एडवोकेट आशिफ इकबाल, वृक्ष मित्र रविन्द्र सिंह कुशवाह सहित दो दर्जन से अधिक अन्य सहयात्री पूरी यात्रा में शामिल रहे। यात्रा के दौरान स्थानीय पूर्व मंत्री, कांग्रेस विधायक, जिला कांग्रेस अध्यक्षों, जिला प्रभारियों, कांग्रेस पदाधिकारी और कांग्रेसजनों का पूरा सहयोग मिला।
यात्रा के आयोजक डॉ. तिवारी ने बताया कि यात्रा के दौरान आदिवासी वन बाहुल्य जिलों में भाजपा शासन के प्रति जनता में भारी आक्रोश व्याप्त है और इस विधानसभा चुनाव में पूरा आदिवासी वर्ग परिवर्तन चाहता है और कमलनाथ जी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए तत्पर है।

  1. मध्यप्रदेश में लगभग 20 लाख तेन्दुपत्ता संग्राहक हैं एवं प्रतिवर्ष लगभग औसतन 20 लाख मानक बोरा तेन्दुपत्ता संग्रहण होता है एवं औसतन लगभग 1,200 करोड़ रूपये का तेन्दुपत्ता का व्यापार मध्यप्रदेश शासन, वन विभाग, करता है। तेन्दुपत्ता संग्राहकों की संग्रहण मजदूरी दर 3,000/- प्रति मानक बोरा है, जबकि छत्तीसगढ़ में 4,000/- प्रतिमाह बोरा है। कांग्रेस पार्टी मजदूरी दर बढ़ाने हेतु वर्तमान सरकार को लेख कर चुकी है परन्तु वर्तमान सरकार के द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया गया है। पिछले वर्ष तेन्दुपत्ता का संग्रहण लगभग 18 लाख मानक बोरा हुआ था, परन्तु इस साल खराब मौसम के कारण मात्र 12 लाख मानक बोरा का ही तेन्दुपत्ता संग्रहण हो पाया है। इस तरह लगभग 180 करोड़ रूपये तेन्दुपत्ता संग्राहकों को कम मजदूरी मिली है। एवं वो आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। परन्तु वर्तमान सरकार 240 करोड़ रूपये संग्राहकों के खाते में न जमा कर इस राशि से जूते, चप्पल, साड़ी तथा पानी की बोतल आयोजन करके बांट रही है। यात्रा के दौरान आदिवासी भाई-बहन प्रशासन द्वारा बांटे गये जूता-चप्पल और साड़ी लाकर दिखाये जो गुणवत्ताविहीन होने के साथ-साथ उनके नाप के नहीं थे। करोड़ों रूपये आयोजन करने में व्यय हो जायेगा। इस तरह संग्राहकों का पैसा उन्हीं से काटकर सरकार अपनी ब्रांडिंग के लिए अपव्यय कर रही है।
  2. एैतिहासिक वन अधिकार अधिनियम 2006 में केन्द्र में कांग्रेस शासनकाल में लाया गया। इस अधिनियम में आदिवासी समुदाय जो वन भूमि में दिसम्बर 2005 से पहले काबिज थे, उन्हें अधिकार पत्र देने का निर्णय हुआ। मध्यप्रदेश में लगभग 627513 दावे पेश किए गए परन्तु भा.ज.पा. के लगभग 18 वर्ष के शासनकाल में 51 प्रतिशत दावे निरस्त कर दिए गए। लगभग 3 लाख आदिवासी परिवार को 365000 हेक्टेयर ज़मीन वन अधिकार पत्र के रूप में दिए गए। यात्रा के दौरान आदिवासी एवं वन बहुल जिलों में हजारों आदिवासी भाई वन भूमि कब्जा होने का प्रमाण लिये मिले, जिन्हें अभी तक वन भूमि का अधिकार पत्र सरकार द्वारा प्रदाय नहीं किया गया है और आदिवासी वर्ग में इससे भारी आक्रोश है। जिन आदिवासी भाईयों को अधिकार पत्र दिया गया, वह जमीन उबड़-खाबड़ एवं असिंचित है। राजस्व किसानों की तरह इन आदिवासियों को किसान क्रेडिट कार्ड जैसी कोई सुविधा नहीं प्रदाय की जा सकी। फलस्वरूप इन्हें बैंक से कर्ज इत्यादि नहीं मिल रहा है एवं अधिकार पत्र में इनकी ज़मीन में उपज बहुत कम हो रही है।
  3. मध्यप्रदेश में कांग्रेस शासन काल में वनों का प्रबंधन संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के माध्यम से किया जा रहा था। लगभग 15,600 गांवों में वन समितियां गठित की जाकर जनभागीदारी से वनों का प्रबंधन एवं सुरक्षा की जा रही थी। इन समितियों को वन सुरक्षा राशि एवं विकास राशि देने का प्रावधान था। समस्त वानिकी कार्य समिति सदस्यों के माध्यम से किया जा रहा था लेकिन 2014 से समितियों को सुरक्षा राशि एवं विकास राशि देना लगभग बंद कर दिया गया है एवं वानिकी कार्य भी मशीनों के माध्यम से सम्पन्न हो रहे हैं। फलस्वरूप समिति सदस्य बेरोज़गार हो गए हैं और समितियां निष्क्रिय हो गई हैं। बुरहानपुर एवं लटेरी की घटना समितियों की निष्क्रियता का ही परिणाम है।
  4. मप्र में 32 लघु वनोपज के समर्थन मूल्य की घोषणा की गई है, परंतु अदिवासी अंचल में इनकी खरीदी नहीं हो रही है। शासन द्वारा बनाये गये वन-धन केंद्र में ताले पड़े हुये हैं। शहडोल जिले में आदिवासी भाई-बहनों द्वारा मांग की गई थी कि महुआ की फसल जिले में अधिक मात्रा में होती है, परंतु भंडारण की कोई व्यवस्था न होने ने सस्ते दाम पर महुआ बेचना पड़ रहा है। इस तरह आदिवासी वर्ग की लघुवनोपज आधारित आजीविका दयनीय स्थिति में है, जिससे लोग पलायन कर रहे हैं।
  5. आदिवासियो की निजी भूमियांे पर खड़े वृक्षों को काटने की अनुमति अभी भी कलेक्टर द्वारा दिया जाता है। फलस्वरूप आदिवासी अपने खेत की बीच अपने उपयोग के लिए नहीं वृक्षों को नहीं काट पाते हैं। ओला/पाला एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले वनोपज के नुकसान का कृषि फसल की तरह हितग्राहियों को आर.बी.सी. की तरह मुआवजा दिलाने का प्रावधान शासन द्वारा नहीं किया गया है। इस संबंध में माननीय पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस कमेटी श्री कमलनाथ जी ने मुख्यमंत्री का पत्र के माध्यम से ध्यान भी आकृष्ट किया है, परन्तु आज तक कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
  6. उमरिया, अनूपपुर एवं शहडोल जिलों में हाथियों एवं अन्य हिंसक वन्य प्राणियों द्वारा जनहानि होने की बहुत सी घटनाएं सामने आयी हैं। घटना से प्रभावितों को अभी मात्र 08 लाख रूपये ही मुआवजा मिला है, जो कि बहुत कम है। महाराष्ट्र में यह 25 लाख रूपये है। इसे बढ़ाकर कम से कम 25 लाख रूपये करना चाहिए। साथ ही साथ एक व्यक्ति को रोजगार दिया जाये।
    आदिवासी भाई-बहनों के विरूद्ध मध्यप्रदेश में लगातार अपराध बढ़ रहे हैं परन्तु वर्तमान सरकार गूंगी बनी बैठी है।
  7. वर्तमान भा.ज.पा. सरकार में प्रत्येक व्यक्ति पर 50,000/- का कर्जा हो चुका है परन्तु प्रतिव्यक्ति वृक्ष सिर्फ 27 ही बचे हैं। इस शासनकाल मंे वन एवं पर्यावरण का गंभीर ह्रास हुआ है।
  8. यात्रा में यह तथ्य भी सामने आये हैं कि राशन दुकानों में मिट्टी का तेल, गेहूं और शक्कर नहीं मिल रही है। साथ ही बिजली की आपूर्ति भी नहीं हो रही है।
  9. वनांचल के गांवों में 80 प्रतिशत आदिवासी युवा बेरोजगार है और वे नशे एवं ताश खेलने के आदी हो रहे हैं। वहीं अनूपपुर जिले में अवैध रूप से खनिज का दोहन हो रहा हैं, परंतु गांव के लोग अपने स्वयं के उपयोग हेतु गांव की बालू भी नहीं ले जा पाते हैं।
  10. सीधी जिले के संजय टाईगर रिजर्व के कोर जोन में 35 गांव हैं, जिन्हें विस्थापन का डर सता रहा है। गांव वालों की शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और सड़क जैसी मूलभूत बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो रही है। इसी जिले के धौहनी विधानसभा क्षेत्र के उमरिया गांव में लगभग 500 आदिवासी भाई-बहन गांव के रोजगार सहायक द्वारा किये गये भ्रष्टाचार के विरूद्व अनशन पर बैठे थे, परंतु चार दिन बाद भी भाजपा विधायक एवं प्रशासन के अधिकारियों ने उनकी कोई सुध नहीं ली। कांग्रेस की यात्रा के वहां पहुंचने पर उन्हें समर्थन देकर स्थानीय एसडीएम से बात की गई, दूसरे दिन प्रशासन और विधायक के पहुंचने पर उनकी बात सुनी गई।
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