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मध्यप्रदेश में चुनाव से पहले नाराज नेता भाजपा के लिए बन रहे हैं सर दर्द

नाराजगी के सबके अपने कारण, लेकिन सबसे ज्यादा नाराजगी उपेक्षा के कारण

भोपाल – मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव को अब करीब 4 महीने का वक्त बचा है। ऐसे में नेताओं के रूठने और उन्हें मनाने का सिलसिला भी तेज हो चला है। सत्ताधारी बीजेपी की बात करें तो नाराज नेताओं से मिले कड़वे अनुभवों का स्वाद चखने के बाद पार्टी सतर्क हो गई है। वह चुनाव से पहले सुनिश्चित कर लेना चाहती है कि उसका काेई पुराना या वरिष्ठ नेता नाराज तो नहीं है।
भाजपा ने नाराज नेताओं को अलग-अलग समितियों में स्थान देकर खुश करने की कोशिश की गई है। कुछ तो मान गए हैं, लेकिन नाराज नेताओं की लिस्ट इतनी लंबी है कि उन्हें मनाने के लिए भाजपा को बकायदा रणनीति बनानी पड़ी है। उसी के मुताबिक रूठों को मनाने की तैयारी की जा रही है।
हाल ही में बीजेपी ने चुनाव के लिए प्रबंधन और घोषणा पत्र समिति के साथ-साथ जिला संयोजकों की नियुक्ति की है। इससे बीजेपी ने रूठे नेताओं को मनाने की कोशिश की है। पार्टी ने इन समितियों में कई सीनियर नेताओं को शामिल किया है, जो लंबे समय से नाराज चल रहे थे। भाजपा ने बकायदा नाराज नेताओं की लिस्ट बनाई है, जिसे पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सौंपा गया है।
दैनिक भास्कर की पड़ताल में पता चला है कि करीब 60 बड़े नेता नाराज चल रहे हैं। इसमें पूर्व मंत्री व पूर्व विधायकों के नाम हैं, जिन्हें ना तो सरकार में कोई पद मिला और ना ही आगामी चुनाव के मद्देनजर कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है।
इस सूची में उन नेताओं के भी नाम हैं, जिनकी स्थानीय स्तर पर एक-दूसरे के साथ पटरी नहीं बैठती है। जानिए, कौन हैं ये रूठे नेता, जिन्हें मनाने की कवायद शुरू की गई। इनमें से कुछ नेता चुनाव से ठीक पहले पार्टी बदलने पर भी विचार कर रहे हैं।

गिरिजाशंकर शर्मा : कांग्रेस में जाने की तैयारी, ‘आप’ से भी ऑफर

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा के भाई और पूर्व विधायक गिरिजाशंकर शर्मा फिर कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं। उन्होंने खुद इसके संकेत दैनिक भास्कर से बात करते हुए दिए हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सरकार और संगठन की स्थिति खराब है। पिछले 5 साल से मुझे कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई।
बड़े नेताओं में शिवप्रकाश होशंगाबाद आए थे। उन्होंने मुझे बैठक में बुलाया था, लेकिन अजय जामवाल और मुरलीधर राव ने सम्मानजनक तरीके से नहीं बुलाया तो उनसे नहीं मिला। पार्टी के मंत्री से लेकर विधायक तक पब्लिक में तो दूर बैठकों में बोलने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं।
कांग्रेस में जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि मैं बीजेपी से संतुष्ट नहीं हूं। मैं एक राजनीतिक कार्यकर्ता हूं। अब चुनाव का समय है। इस समय विकल्प देख रहा हूं, जो राजनीति में उपलब्ध हैं। हम थोड़ा आश्वस्त होना चाहते हैं कि जो दिशा हम राजनीति में चाहते हैं, उस पर सहमति हो।
उन्होंने यह भी कहा कि आम आदमी पार्टी के पदाधिकारियों ने उनसे संपर्क किया था। होशंगाबाद जिले की किसी भी सीट से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया है।

गौरीशंकर बिसेन – ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की पैरवी

पिछले साल सितंबर में पूर्व मंत्री व विधायक गौरीशंकर बिसेन ने कहा था कि यदि पार्टी उनकी बेटी मौसम को टिकट देती है, तो वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। उनके इस बयान से साफ संकेत हैं कि पार्टी बालाघाट में उनके विकल्प पर दांव लगा सकती है। उन्हें शिवराज मंत्रिमंडल में जगह भी नहीं मिली, जबकि वे 7 बार के विधायक हैं। हाल ही में उन्होंने पार्टी लाइन से हटकर ओल्ड पेंशन स्कीम को बेहतर बताया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ तौर पर कहा है कि बीजेपी की लड़ाई वंशवाद और परिवारवाद के खिलाफ है। ऐसे में बिसेन को आभास है कि अगले चुनाव में उनका पत्ता कट सकता है। पार्टी ने उन्हें पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाकर साधने की कोशिश की है। इसके बावजूद बिसेन अपनी बेटी को सार्वजनिक मंचों पर आगे रख रहे हैं।
बेटी मौसम के साथ गौरीशंकर बिसेन। उन्होंने कहा- पार्टी बेटी को टिकट देती है तो वे चुनाव नहीं लड़ेंगे।
बेटी मौसम के साथ गौरीशंकर बिसेन। उन्होंने कहा- पार्टी बेटी को टिकट देती है तो वे चुनाव नहीं लड़ेंगे।

डॉ. गौरीशंकर शेजवार – राजनीतिक अस्तित्व दांव पर

कभी प्रदेश सरकार में प्रभावी मंत्री रहे डॉ. गौरीशंकर शेजवार अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। चुनाव के लिए बनी समितियों में उन्हें जगह नहीं दी गई है। सात बार के विधायक शेजवार ने 2018 के विधानसभा चुनाव में बेटे मुदित को टिकट दिलाया, क्योंकि पूर्व मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने 2017 में चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया था, लेकिन मुदित कांग्रेस के डॉ. प्रभुराम चौधरी से हार गए थे।

अनूप मिश्रा – ग्वालियर पूर्व से चुनाव लड़ने की तैयारी

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं। वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों में और पार्टी की बैठकों में लगातार नजर आ रहे हैं। अनूप मिश्रा ने साफ शब्दों में इरादे एक साल पहले ही जाहिर कर दिए थे। उन्होंने एक बयान में कहा था कि मैं चुनाव लड़ूंगा यह तो तय है। अब पार्टी को सोचना है कि वह कहां से लड़ाना चाहती है। उनके यह तेवर अब पार्टी नेतृत्व के लिए उलझन बढ़ा सकते हैं, क्योंकि अनूप अभी तक ग्वालियर पूर्व विधानसभा से चुनाव लड़ते आए हैं।

हरेंद्र जीत सिंह ‘बब्बू’ – दिग्विजय सिंह से हो चुकी है मुलाकात

पूर्व मंत्री हरेंद्र जीत सिंह ‘बब्बू’ प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा पर मीडिया के सामने आरोप लगा चुके हैं, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात के बाद उनका रवैया थोड़ा नरम पड़ा था। इस बीच चर्चा है कि बब्बू ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से मुलाकात की थी। बब्बू इस बार फिर चुनाव (जबलपुर पश्चिम सीट) लड़ने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के सर्वे में उनकी स्थिति ठीक नही है। ऐसे में पार्टी नए चेहरे को मौका देना चाहती है।
पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह से हरेंद्र जीत सिंह ‘बब्बू’ ने मुलाकात की थी। इसके बाद से उनके कांग्रेस में जाने के कयास लगाए जा रहे हैं।

अलका जैन – पार्टी की तरफ से नहीं मिलती तवज्जो

मुड़वारा (कटनी) की पूर्व मंत्री अलका जैन का दो महीने पहले बयान आया था कि पार्टी के हर कार्यक्रम में आज भी सक्रिय रूप से हिस्सा लेती हूं, लेकिन पार्टी से जिस सम्मान की उम्मीद है वह हमें नहीं मिलता, मैं 14 साल से फ्री हूं, लेकिन पार्टी में कोई पद नहीं है। जब संगठन को हमारी चिंता नहीं है तो हमें जो अवसर मिलेगा, उसका हम लाभ लेंगे। जब व्यक्ति अंदर से पीड़ित है तो चुनाव में इसका असर होना स्वभाविक है, भले ही हम विरोध न करें, लेकिन कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों को लगता है कि इन्हें मक्खी के समान निकालकर बाहर कर दिया है। इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा जब कटनी दौरे पर गए, तब उन्होंने अलका जैन से उनके घर जाकर मुलाकात की थी। इसके बाद से वह कार्यक्रमों में वर्तमान विधायक के साथ मंच साझा कर रही हैं।

इसलिए मिली मलैया व विश्नोई को घोषणा-पत्र समिति में जगह

पार्टी सूत्रों का कहना है कि बीजेपी सीनियर नेताओं की नाराजगी दूर कर विधानसभा चुनाव में उतरना चाहती है। यही वजह है कि घोषणा पत्र समिति का प्रमुख पूर्व मंत्री जयंत मलैया को बनाया गया है। उनकी बगावत के चलते ही दमोह उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। अब उन्हें घोषणा पत्र बनाने की जिम्मेदारी देकर साधने की कोशिश की गई है। इसी तरह पूर्व मंत्री अजय विश्नोई को भी इस समिति में जगह दी गई है, जिनके बयान शिवराज सरकार को समय-समय पर कठघरे में खड़ा करते रहे हैं।

नाराज नेताओं की लिस्ट में बड़े नाम

भंवर सिंह शेखावत – 2018 में बदनावर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार राजवर्धन सिंह दत्तीगांव से हारे। दत्तीगांव अब बीजेपी में शामिल हो गए हैं। शेखावत समय-समय पर सिंधिया समर्थकों की आलोचना करते हैं।
जयभान सिंह पवैया – 2018 में ग्वालियर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार प्रद्म्मन सिंह तोमर से हारे। तोमर बीजेपी में शामिल हो गए। अब इस सीट से उन्हें टिकिट मिलेगा या नहीं, इस पर असमंजस बरकरार है।
सत्यनारायण सत्तन – इंदौर विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 1 से विधायक रहे सत्तन ने कर्नाटक चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी नेताओं पर जमकर जुबानी हमला बोला था। बाद में शिवराज ने भोपाल बुलाकर सत्तन से बात की थी।
माया सिंह – 2013 में शिवराज सरकार में मंत्री रहीं, लेकिन 2018 में उनका टिकट काटकर सतीश सिकरवार को टिकट दिया गया था। इसके बाद से संगठन में उनकी सक्रिय भूमिका दिखाई नहीं दी।
शंकरलाल तिवारी – सतना से चार बार विधायक रहे। 2018 में कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाह से चुनाव हार गए। इसके बाद वे राजनीति में सक्रिय नहीं दिखाई दिए, लेकिन ब्राह्मणों के बीच उनकी पकड़ मजबूत है।
राधेश्याम पाटीदार – 2018 में सुवासरा सीट से कांग्रेस के हरदीप सिंह डंग से महज 350 वोट से चुनाव हार गए थे। डंग बीजेपी में शामिल हो गए। अब डंग का दावा मजबूत है। पाटीदार की बहू मंदसौर जिला पंचायत की निर्विरोध अध्यक्ष चुनी गई हैं।
सुर्कीति जैन – कटनी जिले से बीजेपी से 1993 में विधायक रहे। वर्तमान में पार्टी में कोई महत्वपूर्ण पद पर नहीं हैं। स्थानीय राजनीति में पिछले कई सालों से सक्रिय नहीं हैं। वे अपने बगावती तेवर पार्टी को दिखा चुके हैं। माना जा रहा है कि जैन अब कांग्रेस में जा सकते हैं।
गिरिराज किशोर पोद्दार – कटनी मुड़वारा सीट से 2008 में विधायक बने। 2019 में खजुराहो लोकसभा सीट से वीडी शर्मा के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ने के कारण से पार्टी से निष्कासित कर दिए गए थे, लेकिन फिर पार्टी में वापस आए।
नारायण सिंह कुशवाहा – तीन बार के विधायक हैं। पिछला चुनाव 121 वोट से चुनाव हार गए थे। इसकी वजह बागी होकर चुनाव लड़ी समीक्षा गुप्ता को बताया गया। पार्टी ने समीक्षा को वापस ले लिया था। कुशवाहा ने बयान दिया था कि समीक्षा को चुनाव मैदान में उतारते हैं तो मैं प्रचार नहीं करुंगा।
हर्ष चौहान – बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और दिवंगत नेता नंद कुमार सिंह चौहान के बेटे। नंद कुमार सिंह के निधन के बाद खंडवा लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था। पार्टी ने हर्ष चौहान को टिकिट नहीं दिया। ज्ञानेंद्र पाटिल को उम्मीदवार बनाया गया। इसके बाद से हर्ष को कोई पद नहीं दिया गया है।
ललिता यादव – बड़ा मलहरा सीट से 2018 का चुनाव कांग्रेस के प्रद्युम्न सिंह लोधी से हार गई थी। लेकिन लोधी बीजेपी में आ गए। तब ललिता ने तीखे तेवर दिखाए थे। उन्होंने कहा था- कांग्रेस विधायक ने रेत का अवैध कारोबार किया था। अब उन्हें ह्रदय परिवर्तन करना ही होगा, नही तो विरोध करुंगी। महेन्‍द्र भैरु सिंह बापू , बृजमोहन सिंह, लड्डूराम कोरी,आरडी प्रजापति, डॉ. योगेन्द्र निर्मल का नाम भी नाराज नेताओं की लिस्ट में है।

बीजेपी की बदली नीतियों का प्रतिकूल असर

राजनीतिक विश्लेषक अरुण दीक्षित कहते हैं कि बीजेपी के कई नेताओं को ऐसा लगने लगा है कि पार्टी में अब उनका कोई भविष्य नहीं है, क्योंकि पिछले दिनों जो परिवर्तन हुए और नीतियां बदली गई, उसका प्रतिकूल असर पड़ता दिख रहा है। वरिष्ठ नेताओं को मार्गदर्शक मंडल की तरफ धकेला जा रहा है। गौरीशंकर शेजवार, रघुनंदन शर्मा जैसे नेताओं को उम्र का हवाला देकर साइडलाइन किया गया। फिर यह शर्त भी लगा दी कि पार्टी में वंशवाद नहीं चलेगा। ऐसे में नेता अपनी राजनीतिक विरासत बचाने के लिए बगावत कर रहे हैं। ये नाराज नेता अन्य दलों में अपना भविष्य तलाश कर रहे हैं।

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