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बिजली विभाग इन्हें कर्मचारी नहीं मानता:ड्यूटी नहीं थी, फिर भी खंभे पर चढ़ाया

मप्र में ऐसे 500 कर्मचारियों की करंट से मौत, एक हजार दिव्यांग

भोपाल – मंडला निवासी जितेंद्र मरावी भोपाल में संविदा लाइनमैन था। पिता घंसूलाल बताते हैं कि वह 24 साल का था और नौकरी नहीं करने की जिद कर रहा था, लेकिन परिवार की हालत देखकर मैंने ही उसे जैसे-तैसे मनाया। उस दिन उसकी ड्यूटी नहीं थी, लेकिन साहब ने जबरदस्ती पोल पर चढ़ा दिया। करंट लगा। एक गलती से जवान लड़का खत्म हो गया, हमारा सब लुट गया। विभाग ने ​आम आदमी मानते हुए सिर्फ 4 लाख का ही मुआवजा दिया। परिवार की हालत फिर वैसी ही हो गई है। यह इकलौता मामला नहीं है। मप्र में बिजली कंपनियों में 45 हजार आउटसोर्स कर्मचारी लगे हैं। मेंटेनेंस का जिम्मा इन्हीं के कंधों पर है। लेकिन, जान जोखिम में डालने वाले इन कर्मचारियों को ऊर्जा विभाग का कर्मचारी नहीं माना जाता। यही वजह है कि हादसा होने पर इन्हें कर्मचारी नहीं, आम आदमी मान लिया जाता है। आउटसोर्स और संविदा कर्मचारियों के संगठनों की मानें तो 2005 में ठेकेदारी प्रथा शुरू हुई। तब से 500 कर्मचारियों की ऐसे ही हादसों में मौत हो चुकी। करीब 1,000 दिव्यांग हो गए, लेकिन इनके परिवारों की सुध न तो अफसर और न ही विभाग ले रहा है। उमरिया की चंदिया तहसील निवासी अरविंद संविदा लाइन परिचालक थे। दो अक्टूबर 2022 को 11 केवी की लाइन पर काम कर रहे थे। अचानक करंट चालू होने से झुलस गए। इलाज चला, लेकिन दोनों हाथ काटने पड़े। अस्पताल के खर्च के लिए 20 लाख रुपए कर्ज लेना पड़ा। कंपनी ने सिर्फ 3 लाख 6 हजार रुपए ही दिए, जबकि खर्च 25 लाख हुए। 8 साल की बेटी हार्ट पेशेंट है। आजीविका चलाना मुश्किल है। 4 जुलाई 2022 को फॉल्ट सुधारने खंभे पर चढ़े, करंट से मौत हुई। तारों में शव फंसा रहा। आउटसोर्स कर्मचारी थे। पत्नी रंजना बताती हैं कि काम के दौरान उनकी जान गई, लेकिन सरकार से मुआवजा नहीं मिला। 3 बच्चों का भरण-पोषण मुश्किल से हो रहा है। रायसेन के बरेली में ऑपरेटर थे। भाई भगवत बताते हैं कि 14 सितंबर 2020 को अधिकारियों ने उन्हें मेंटेनेंस की ड्यूटी पर लगा दिया। काम के दौरान वे करंट से झुलस गए। 8 दिन बाद 23 सितंबर 2020 को मौत हो गई। परिवार को सिर्फ 4 लाख मुआवजा मिला। परिवार में आजीविका का कोई साधन नहीं है। अनुकंपा आश्रित संघर्ष संघ के संयोजक असगर खान बताते हैं कि 1992 के बाद से बिजली कंपनी में भर्ती की नियमित प्रक्रिया बंद हो चुकी है। प्रदेश में 33 और 11 केवी के 5 हजार से ज्यादा सब स्टेशन हैं। इनमें 75% की बागडोर आउटसोर्स कर्मचारी संभाले हुए हैं, फिर भी इन्हें विभागीय कर्मचारी नहीं माना जाता। प्रदेश में हर साल औसतन 50 से 60 आउटसोर्स कर्मचारियों की करंट से मौत होती है, जबकि 150 घायल होते हैं, क्योंकि जोखिम वाले ज्यादातर काम इन्हीं आउटसोर्स या संविदाकर्मियों से कराए जाते हैं। इनके संगठन का कहना है कि कंपनियां मुआवजा और नौकरी बचाने के लिए इन्हें अपना कर्मचारी तक नहीं मानतीं।

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