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पीएम आवास लेकर मुश्किल में फंसे लोग

5 साल बाद भी जवाब नहीं, कब मिलेगा पजेशन, 70% वेतन लोन और किराए पर खर्च

भोपाल – चार साल से होम लोन की किस्त और मकान का किराया दोनों भर रहा हूं। वेतन का 70 फीसदी हिस्सा केवल इसी में जा रहा है। बच्चों की छोटी-छोटी डिमांड भी पूरी नहीं कर पाता तो शर्मिंदा महसूस करता हूं।’ मप्र टूरिज्म विभाग में काम करने वाले राहुल तल्खी ने इस तरह अपना दर्द बयां किया।
राहुल ने प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) में भोपाल के 12 नंबर योजना में फ्लैट बुक किया था। उस समय नगर निगम अधिकारियों ने भरोसा दिलाया था कि एक साल में फ्लैट का पजेशन मिल जाएगा। राहुल ने बैंक से लोन लेकर 20 लाख रुपए नगर निगम को दिए। 4 साल से ज्यादा हो चुके हैं, न तो बिल्डिंग बनी ना ही निगम के अधिकारी जवाब दे रहे हैं कि कब तक मकान का पजेशन मिलेगा।
राहुल ऐसे अकेले नहीं हैं। ऐसी कहानी मप्र के 40 शहरों में पीएम आवास योजना (शहरी) में मकान बुक कराने वाले हजारों लोगों की है। इन लोगों का इंतजार खत्म ही नहीं हो रहा है। 2015 में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) लॉन्च की थी। मकसद ये था कि शहरों में सभी के पास मकान हो, लेकिन एमपी में निगम के ठेकेदारों व निगम अफसरों ने प्रधानमंत्री मोदी की इस महत्वाकांक्षी योजना को अधर में लटका दिया।

बोले- घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया

भास्कर ने जब पीड़ित परिवारों से बात की तो उनका दर्द फूट पड़ा। उनका कहना था कि अपने मकान का सपना पूरा करने के लिए बैंक से 20 से 25 लाख का लोन लेकर निगम में जमा कर दिया, लेकिन प्रोजेक्ट पूरे नहीं होने से अब मकान का किराया भी चुका रहे हैं और हर माह 15 से 20 हजार रुपए की बैंक को किस्त भी दे रहे हैं। पीड़ित परिवारों का कहना है कि इस दोहरे खर्च में उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई, उनके लिए घर चलाना भी मुश्किल साबित रहा है।

इन दो मामलों से समझें कि कैसे परेशान हो रहे हैं लोग

केस 1: मकान बना नहीं और बैंक रजिस्ट्री के पेपर मांग रहा

भोपाल की रहने वाली विजय लक्ष्मी पटौदिया ने इस योजना में अपनी बेटी के लिए 3 बीएचके फ्लैट बुक कराया था। उनकी बेटी दिल्ली में रहती है और वह भोपाल आना चाहती है। पटौदिया कहती हैं कि नगर निगम ने एक साल में प्रोजेक्ट पूरा होने का दावा किया था। इसके लिए हमने बैंक से लोन लिया है। बैंक अधिकारी मकान की रजिस्ट्री करवाने का दबाव बना रहे हैं। वे कहते हैं कि यदि रजिस्ट्री जमा नहीं की तो लोन की किस्त बढ़ जाएगी। अब उन्हें कौन बताएं कि नगर निगम ने फ्लैट ही नहीं बनाया तो रजिस्ट्री कहां से होगी।

केस 2: नगर निगम अधिकारी नहीं बता रहे कब पूरा होगा प्रोजेक्ट

लोकेन्द्र श्रीवास्तव कहते हैं, 2017 में नगर निगम ने बड़े-बड़े दावे कर फ्लैट्स की बुकिंग शुरू की थी। 2018 में मैंने 12 नंबर प्रोजेक्ट में आवास बुक कराया था। उस वक्त 18 माह में प्रोजेक्ट पूरा करने का दावा किया था, लेकिन 6 साल बाद भी आवास कब तक बनेंगे, ये खुद निगम अधिकारी नहीं बता पा रहे। प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं हुआ तो निगम ने ठेका कंपनी को ब्लैक लिस्ट कर उसका टेंडर निरस्त कर दिया था, अब नई कंपनी को टेंडर दिया गया है। हर बार की तरह इस बार भी दिसंबर तक काम खत्म करने का वादा किया जा रहा है। मैं पिछले 6 साल से मकान का लोन और घर का किराया दोनों चुका रहा हूं।

जहां पजेशन मिला वहां के हाल भी खराब…

6 महीने का मेंटनेंस एडवांस में लिया, लेकिन कोई देखने वाला नहीं

नगर निगम के 40 शहरों में प्रोजेक्ट चल रहे हैं। हर शहर में आवासों की क्वालिटी को लेकर हितग्राही लगातार आपत्ति जताते रहे हैं। राहुल नगर में आवास लेने वाले मितेश गीते बताते हैं, निगम ने पार्किंग, गार्डन, सीसीटीवी सर्विलांस, कम्युनिटी हॉल और रेरा के नियमानुसार मल्टी का मेंटनेंस भी होगा। अलॉटमेंट के पहले ही 6 माह का मेंटनेंस की राशि जमा करा ली गई, लेकिन मकान का मेंटनेंस भी नहीं हो रहा। नई मल्टी में सीपेज की भी समस्या है।

अब जानिए पूरे प्रदेश की तस्वीर….

पूरे प्रदेश में सबसे बुरे हाल जबलपुर के हैं। यहां 3984 मकानों की बुकिंग हुई, लेकिन अब तक सिर्फ 119 लोगों को ही पजेशन मिल पाया है। इंदौर में 12448 में सिर्फ 3700 और भोपाल में 7755 मकानों की बुकिंग में सिर्फ 2521 मकानों के पजेशन हो पाए हैं। जिन कॉन्ट्रैक्टर को निर्माण का जिम्मा दिया गया था, उनके काम की सुस्त गति को देखते हुए कॉन्ट्रैक्टर्स को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है। अब फिर अधूरे निर्माण को पूरा करने के लिए नई कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया है। नगरीय प्रशासन एवं आवास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि दिसंबर 2024 तक अधूरे मकानों को पूरा कर लिया जाएगा, लेकिन लोगों को इस पर भरोसा नहीं हो रहा है। वजह ये है कि पहले भी सरकार कई दफा डेडलाइन बढ़ा चुकी है।

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