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उज्जैन की शिप्रा नदी में कान्ह का प्रदूषित पानी मिलने से रोकने के इंतजाम नहीं

मायूस हो रहे हैं श्रद्धालु, कार्तिक पूर्णिमा की तरह मकर संक्रांति पर्व का स्नान भी गंदे पानी में होने की आशंका अधिक।

उज्जैन – विधानसभा चुनाव के बाद भी मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में कान्ह का प्रदूषित पानी मिलना सतत जारी है। ये मिलन रोकने को जमीनी तौर पर कहीं भी इंतजाम नजर नहीं आ रहे।
हकीकत में जिस मात्रा में जितने वेग से कान्ह का पानी उज्जैन आ रहा उसे रोकना फिलहाल मुमकिन भी नहीं है। ऐसे में कार्तिक पूर्णिमा की भांति मकर संक्रांति का स्नान भी शिप्रा के गंदे पानी में ही होने की संभावना प्रबल होती नजर आ रही है। इस विषय को लेकर महापौर और कलेक्टर के बीच हुई चर्चा भी कोई ठोस नतीजा सामने नहीं ला सकी है।
मालूम हो कि उज्जैन में मकर संक्रांति (इस वर्ष 15 जनवरी 2024) पर शिप्रा नदी में श्रद्धालुओं के स्नान करने की परंपरा है। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन नदी में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसलिए श्रद्धालुओं की भावनाओं को ध्यान में रख शासन-प्रशासन स्नान शिप्रा के स्वच्छ जल में कराने को हर साल ताकत झोंकता रहा है। मगर इस बार ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा। विदित रहे कि देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के सीवेज युक्त नालों का गंदा पानी (इसे कान्ह नदी कहते) उज्जैन आकर शिप्रा में मिलकर समूचे जल को प्रदूषित करता है।

शिप्रा के नहान क्षेत्र(त्रिवेणी से कालियादेह महल तक) में ये मिलन रोकने को साल 2016 में शासन ने 95 करोड़ रुपये खर्च कर पीपल्यिाराघौं से कालियादेह महल के आगे तक भूमिगत पाइपलाइन बिछाकर पानी का रास्ता बदलने का प्रयास किया था मगर ये प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हो सका। क्योंकि जितनी क्षमता की पाइपलाइन बिछाई, उससे अधिक पानी इंदौर से आता रहा। परिणाम स्वरूप पाइपलाइन समय-समय पर फूटी और प्रदूषित पानी ओवर फ्लो होकर शिप्रा के स्नान क्षेत्र में भी मिलने लगा। ये मिलन अभी सतत रूप से जारी है। मामले में महापौर मुकेश टटवाल का कहना है कि कान्ह के पानी का बहाव इतना तेज है कि इसे रोकना फिलहाल मुश्किल दिख रहा है।
पानी को रोका नहीं जा सकता। रास्ता बदला जा सकता है मगर सवाल ये है कि इतने कम समय में कैसे बदले। पानी कम होने पर या रूकने पर ही बांध बनाया जा सकता है। इस सब विषयों से कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम को अवगत कराया था।
कान्ह का प्रदूषित पानी शिप्रा के नहान क्षेत्र में मिलने से रोकने के लिए 598 करोड़ रुपये की कान्ह डायवर्शन क्लोज डक्ट परियोजना पिछले वर्ष शासन ने स्वीकृत की थी।
ये योजना सिंहस्थ- 2052 को ध्यान में रख बनाई थी। कायदे से इसका काम शुरू हो जाता तो अभी ये समस्या उत्पन्न ही न होती। मगर ये योजना कागजों ही सिमटी पड़ी है। इतना ही नहीं यही योजना पहले बनाकर 2016 में ही क्रियान्वित करा ली जाती तो शिप्रा शुद्धी के नाम पर हुए खर्च हुए करोड़ों रुपये भी बच जाते।

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