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मध्य प्रदेश में कांग्रेस को 151 सीट, भाजपा एवं अन्य को 79 सीट मिलने का अनुमान

इस बार चमत्कारिक हो सकते हैं मध्यप्रदेश के चुनावी परिणाम

भोपाल – मध्यप्रदेश का मतदाता इस बार खुलकर कह रहा था, कि उसे परिवर्तन करना है। लगभग 20 साल से मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। 15 महीने कमलनाथ की कांग्रेस सरकार चली, उसके बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। मुख्यमंत्री के रुप में 16 साल से शिवराज सिंह हैं। निश्चित रूप से इस चुनाव में परिवर्तन की लहर का खामियाजा भारतीय जनता पार्टी को भुगतना पड़ रहा है।
2023 के विधानसभा चुनाव में 77.15 फ़ीसदी मतदान हुआ है। जो अभी तक का एक रिकॉर्ड है। इसमें भारतीय जनता पार्टी को 38.30 फ़ीसदी मत प्राप्त होते हुए दिख रहे हैं। जो पिछली चुनाव की दृष्टि से मात्र 2.70 फ़ीसदी कम है। भारतीय जनता पार्टी को इस वोट प्रतिशत के हिसाब से 69 सीटों पर विजय प्राप्त होती हुई दिख रही है। ठीक इसके विपरीत कांग्रेस का वोट परसेंटेज पिछले चुनाव की दृष्टि से मात्र दो फ़ीसदी बढा है। कांग्रेस को इसका बड़ा फायदा होता हुआ दिख रहा है। परिवर्तन की लहर के कारण, कांग्रेस 151 सीटों पर विजय प्राप्त करती हुई दिख रही है। 2023 के विधानसभा चुनाव में मात्र 10 सीटों पर अन्य प्रत्याशी विजय प्राप्त करते हुए दिख रहे हैं। 2003 के तर्ज पर नाराजगी की लहर के चुनाव परिणाम देखने को मिल रहे हैं।2023 के चुनाव परिणाम आश्चर्यजनक होने वाले हैं। जिस पर आसानी के साथ विश्वास नहीं किया जा सकता है। चुनाव परिणाम आने के बाद ही भरोसा हो सकता है।
-केंद्रीय नेतृत्व ने निकाली हवा
मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में केंद्रीय नेताओं ने केंद्रीय मंत्रियों के हाथों में विधानसभा चुनाव की कमान सौंप दी। उन्हें मध्य प्रदेश के बारे में कुछ पता नहीं था। रही सही कसर केंद्रीय नेतृत्व के एक गलत निर्णय ने, जिसमें तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित 6 सांसदों को विधानसभा के चुनाव मैदान में उतार कर स्वयं यह संदेश दे दिया, कि भारतीय जनता पार्टी की स्थिति इस चुनाव में कमजोर है। केंद्रीय मंत्रियों के रूप में और संसद के रूप में जो स्टार प्रचारक हो सकते थे। वह विधानसभा चुनाव की लड़ाई लड़ने में व्यस्त हो गए। इसका खामियाजा 2023 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को होता हुआ दिख रहा है।
-नोट बंदी एवं जीएसटी का प्रभाव अब
केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी और जीएसटी लागू किए जाने के बाद से आर्थिक कठिनाइयों का नया दौर शुरू हुआ है। नोटबंदी के कारण कई महीने तक व्यापार और औद्योगिक गतिविधियां ठप्प हो गई थी। जीएसटी के कारण भी उद्योग और व्यापार में इसका विपरीत असर पड़ा। भारतीय नागरिकों के ऊपर जीएसटी के माध्यम से भारी टैक्स वसूली का असर मंहगाई के रुप में पड़ने लगा। 2019 के बाद से बेतहासा मंहगाई बढ़ रही है।
2018 के बाद से ही राज्य सरकारों की आर्थिक कठिनाइयां बढ़ने लगी। राज्यों के चुनाव में इसका असर दिखने लगा। कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी। अन्य राज्यों में भी इसी तरीके का परिवर्तन देखने को मिला। जीएसटी के दायरे में धीरे-धीरे सभी सेवाओं को भी शामिल कर लिया गया। अब कोई भी सेवा या कोई भी कारोबार बाकी नहीं है। जिसमें जीएसटी नहीं लगता हो। इसी बीच कोरोना महामारी आई। कोरोना महामारी के बाद कारोबार पर इसका बड़ा असर पड़ा। बेरोजगारी बढ़ी, लोगों की आय कम हुई, खर्च बढ़ गए। महंगाई लगातार बढ़ती चली गई, आम लोगों के ऊपर कर्ज भी बढ़ता चला गया। 2022 के बाद से यह नाराजगी अब स्पष्ट रूप से जनता के बीच में देखने को मिलने लगी। 2023 में जो भी विधानसभा चुनाव हुए हैं वह सब मतदाताओं की नाराजगी के चलते परिवर्तन के लिए हुए हैं। हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। वहां पर भी मतदाताओं की नाराजगी भाजपा को पराजय के रुप में झेलनी पड़ी। कर्नाटक में भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी, वहां पर भी भाजपा की पराजय हुई। दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को पराजित होना पड़ा। यह मतदाताओं की नाराजगी और सत्ता परिवर्तन का संकेत है।

  • 2003 जैसे हालात
    2003 में कुछ इसी तरीके के हालात थे। जो वर्तमान में देखे जा रहे हैं। उस समय दिग्विजय सिंह भी कहते थे कि प्रबंधन के जरिए चुनाव जीते जाते हैं। 2003 में सड़क, पानी, बिजली की स्थिति बहुत खराब थी। भारतीय जनता पार्टी की ओर से उमा भारती ने बड़ी आक्रामक शैली से चुनाव लड़ा और आशा के विपरीत दो तिहाई बहुमत से भारतीय जनता पार्टी यह चुनाव जीती थी। उस समय कांग्रेस और भाजपा दोनों ही चुनाव परिणाम को लेकर आश्चर्यचकित थे, कि ऐसा कैसे हो गया।
    2023 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश के सभी अंचलों के मतदान के पूर्व और मतदान के बाद सर्वे में एक बात समान रूप से पाई गई है, कि इस बार मतदाता परिवर्तन करना चाहता है। मतदान के दौरान भी अधिकांश मतदाता पोलिंग बूथ पर इसी तरह की बात खुलकर कह रहा था।
    -लाडली बहना योजना
    मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बड़ी कुशलता के साथ लाडली लक्ष्मी बहना योजना और रसोई गैस में सब्सिडी देकर महिलाओं तक अपनी पहुंच बनाने का काम किया। भारतीय जनता पार्टी भी इस बात को समझ रही है कि यदि महिलाओं का समर्थन उसके पक्ष में आ गया, तो चुनाव उसके पक्ष में आना तय है। लेकिन महिलाएं भी लाड़ली बहना योजना को लेकर कई भागों में बटी हुई हैं। योजना में सभी महिलाओं को शामिल नहीं किया गया। दूसरा चुनाव के दो माह पहले शुरू की गई इस योजना का लाभ कांग्रेस ने 1500 प्रतिमाह देने को वचन पत्र में शामिल किया है। जिसके कारण महिलाओं के बीच इसकी समान प्रतिक्रिया रही है।
  • चमत्कारिक होंगे चुनाव परिणाम
    2023 का मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव अपने आप में अनूठा है। इसको समझने के लिए हमें 1990 से लेकर 2023 तक के परिणाम का विश्लेषण करके सर्वे के इस निष्कर्ष पर पहुंच पाए हैं। कांग्रेस को इस चुनाव में 42.90 फ़ीसदी मत प्राप्त हो रहे हैं। कांग्रेस को 151 सीट मिल सकती हैं। इसके विपरीत भारतीय जनता पार्टी का वोट बैंक 2.7 फ़ीसदी घटकर 38.3 फ़ीसदी रहने का अनुमान है। जिसके कारण भारतीय जनता पार्टी को इस चुनाव में अधिकतम 69 सीट मिलने के आसार बन रहे हैं। इस चुनाव में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के सीधा मुकाबला था। जहां पर सपा, बसपा, गोंडवाना, एवं अन्य कोई उम्मीदवार जीतने की स्थिति में था। वहीं पर त्रिकोणीय स्थिति बनी हैं। बाकी विधान सभा क्षेत्रों में वोटो का बटवारा बहुत कम हुआ है। इसका लाभ भी कांग्रेस के पक्ष में होता हुआ दिख रहा है।
  • 1990 से 2023 के विधानसभा चुनाव का विश्लेषण
    1990 का विधानसभा चुनाव राम मंदिर और राम रथ यात्रा के बीच में हुआ था। इस चुनाव में 54.19 फीसदी मतदाताओं ने मतदान किया था। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 220 सीट मिली थी। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 39.14 फ़ीसदी वोट प्राप्त हुए थे। कांग्रेस को 56 सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी। कांग्रेस का वोट प्रतिशत 33.38 फ़ीसदी रह गया था। 44 सीट अन्य दलों को प्राप्त हुई थी। 2000 तक मध्य प्रदेश की विधानसभा में 320 सीटों पर चुनाव होते थे।
  • 1993 का विधानसभा चुनाव
    उत्तर प्रदेश में कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद को 6 दिसम्बर 1992 को ढहा दिया था। उसके बाद मध्य प्रदेश की तत्कालीन सुंदरलाल पटवा की सरकार को केन्द्र सरकार ने बर्खास्त कर दिया गया था। म.प्र. राष्ट्रपति का शासन लागू हो गया था। 1993 में विधानसभा चुनाव हुए। 1993 में 60.52फीसदी मतदाताओं ने मतदान किया था। इसमें कांग्रेस का वोट बैंक लगभग 7 फीसदी बढा। कांग्रेस को 40.67 फ़ीसदी वोट प्राप्त हुए। कांग्रेस को 174 सीटों पर विजय प्राप्त हुई भारतीय जनता पार्टी का वोट बैंक मात्र 0.22 घटा और भारतीय जनता पार्टी को 101 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। हार जीत का अंतर बहुत कम रहा। 1993 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 38.92 फ़ीसदी वोट मिले थे। अन्य को 27 सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी।
    1998 में दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। प्रदेश की आर्थिक स्थिति खराब हो चली थी। बिजली और सड़कों की समस्या खराब होती जा रही थी। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कांग्रेस ने पूरी सजगता के साथ चुनाव लड़ा। 1998 में 60.22 फ़ीसदी मतदान हुआ था। इसमें कांग्रेस को 40.59 फ़ीसदी वोट प्राप्त हुए थे। कांग्रेस को 172 सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी। भारतीय जनता पार्टी का भी वोट बैंक 0.36 फ़ीसदी बढा था। लेकिन सीटों की संख्या 119 ही रही। 1998 के चुनाव में 29 अन्य उम्मीदवारों को विजय प्राप्त हुई थी। लगातार दूसरी विजय के बाद दिग्विजय सिंह निरंकुश होने लगे। चरनोई की भूमि, बिजली,पानी, सड़क,सरकारी कर्मचारियों की नाराजी दलित और आदिवासी एजेंडे में अन्य वर्गों की उपेक्षा करने के कारण नाराजी बढी। इसी बीच भारतीय जनता पार्टी ने उमा भारती के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की ठानी। उमा भारती ने पूरी आक्रामकता के साथ चुनाव लड़ा। दिग्विजय सिंह को बंटाधार बताते हुए जिस तरह की की आक्रामकता का परिचय दिया। उस पर मतदाताओं को विश्वास हुआ। भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीत सकती है। 2003 में 67.25 फ़ीसदी मतदान हुआ, जो एक रिकार्ड मतदान था। भारतीय जनता पार्टी का वोट बैंक बढ़कर 40.50 फ़ीसदी हो गया। कांग्रेस का वोट बैंक मात्र 2.89 फ़ीसदी घटा। 2003 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी 173 सीटों पर चुनाव जीती। वहीं कांग्रेस मात्र 38 सीटों पर सिमट कर रह गई। अन्य को 19 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का बंटवारा होने के बाद यह पहला चुनाव था। जिसमें कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। 1998 से 2003 के बीच की वित्तीय स्थिति भी खराब थी। केन्द्र से राज्यों को पर्याप्त आर्थिक मदद नहीं मिली। वहीं सरकारी कर्मचारियों के 30 फीसदी पद समाप्त करने और दैनिक वेतन भोगियों को हटाने की अधिसूचना जारी की। जिसका खामियाजा भी तत्कालीन दिग्विजय सरकार को भोगना पड़ा था।
    2008 के विधानसभा चुनाव में 69.63 फ़ीसदी मत पड़े थे। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का वोट बैंक घटकर 37.66 फीसदी रह गया और भारतीय जनता पार्टी की सीट 173 से घटकर 143 रह गई। कांग्रेस का वोट बैंक भी इस चुनाव में घाटा जो मात्र 32.39 फीसदी वोट मिला। कांग्रेस को 71 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। अन्य 16 सीटों पर अन्य विजयी हुए। 2003 से 2008 के बीच में मध्य प्रदेश ने तीन मुख्यमंत्री देखे, पहले मुख्यमंत्री उमा भारती बनी। उसके बाद बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने। आपसी खींचतान के चलते शिवराज सिंह चौहान तीसरे मुख्यमंत्री बने।
    2013 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान की परीक्षा होनी थी। उनके नेतृत्व में यह दूसरा चुनाव लड़ा जा रहा था। इस बीच मध्य प्रदेश की आर्थिक स्थिति बहुत तेजी के साथ सुधरी। वैश्विक व्यापार संधि का असर आर्थिक व्यवस्था पर पड़ा। निरंतर हर साल मध्य प्रदेश सरकार की राजस्व आय बढ़ी। केंद्रीय योजनाओं से बड़े पैमाने पर राशि मिलना शुरू हुई। वहीं वैश्विक संस्थाओं द्वारा मध्य प्रदेश शासन को बड़े पैमाने पर ऋण भी मिला। मध्य प्रदेश सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम किया था। गांव गांव तक दवाइयां मिलने लगी थी। स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार होने का असर ग्रामीण अंचलों में व्यापक स्तर पर पड़ा। 2013 में 72.69 फ़ीसदी मतदाताओं ने मतदान किया। इसमें भाजपा का वोट बैंक 7.21 फ़ीसदी बढा। भाजपा का वोट बैंक 44.87 पर पहुंच गया। इसके बाद भी भारतीय जनता पार्टी को मात्र 166 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। कांग्रेस मात्र 58 सीटों पर 36.37 फ़ीसदी वोट पाने के बाद भी सिमट कर रह गई। 6 सीट अन्य राजनीतिक दलों को प्राप्त हुई। उनका वोट बैंक भी बढ़कर 8.50 फ़ीसदी हो गया। जिसने कांग्रेस की सीटों की संख्या को घटाने में काफी अहम रोल अदा किया।
    2018 के विधानसभा चुनाव में भी 75.63 फ़ीसदी मतदान हुआ था। 15 साल से लगातार भारतीय जनता पार्टी का शासन था। नोटबंदी और जीएसटी का असर भी मंहगाई के रुप में दिखने लगा था। 2013 के लोकसभा चुनाव में 3.87 फ़ीसदी वोट भाजपा के घटे और भाजपा 109 सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस के वोट बैंक में 4.53 फ़ीसदी का इजाफा हुआ कांग्रेस को 40.90 फ़ीसदी वोट मिले और 114 सीटों पर विजय प्राप्त की। इसके बाद भी कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। 2018 के चुनाव में इतनी आर्थिक विषमता नहीं थी, जितनी आर्थिक विषमता और नाराजगी 2023 के चुनाव में देखने को मिल रही है।

-विभाजन के बाद 2001 की स्थिति

मध्यप्रदेश छत्तीसगढ राज्य के विभाजन के पश्चात म.प्र. की 230 सीटों की दलीय स्थिति में कांग्रेस के पास 127 भाजपा के पास 83 एवं अन्य के पास 20 सीटें थी। राज्य विभाजन के पश्चात 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पराजय हुई। जिसकी कल्पना कांग्रेस को भी नहीं थी। भाजपा भी 2003 के चुनाव परिणाम को लेकर आश्चर्य चकित थी। 2003 का चुनाव तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ नाराजी का था। उमा भारती ने इसे अपनी स्वंय की लोकप्रियता से जोड़ दिया था। जिसका खामियाजा उन्हें आज तक भुगतना पड़ रहा है।

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