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मुख्यमंत्री गाेसेवा योजना से बनी एक हजार सरकारी गाेशालाओं में से 600 में पानी-बिजली के इंतजाम नहीं

450 गाेशालाएं तो बनने के बाद वीरान पड़ी हैं, जबकि 150 जुगाड़ से बमुश्किल संचालित हो रही हैं

भोपाल- मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री गाेसेवा योजना से बनी एक हजार सरकारी गाेशालाओं में से 600 में पानी-बिजली के इंतजाम नहीं हैं। इस कारण 450 गाेशालाएं तो बनने के बाद वीरान पड़ी हैं, जबकि 150 जुगाड़ से बमुश्किल संचालित हो रही हैं। इतना ही नहीं इन गाेशालाओं को चरागाह विकसित करने के लिए जाे 5-5 एकड़ जमीन सरकार ने दी है, 148 गाेशालाओं की इस जमीन पर भी अतिक्रमण हाे गया है। सर्वाधिक 95 गाेशालाओं की जमीनें अकेले गुना जिले में अतिक्रमण का शिकार पाई गई हैं।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक ये सभी गाेशालाएं पिछले तीन साल में बनकर तैयार हुई हैं। शासन ने इनके निर्माण के लिए तो मनरेगा से बजट आवंटित किया था, लेकिन पानी के लिए बोरवेल खनन और बिजली कनेक्शन के लिए स्पष्ट प्रावधान न कर 15वें वित्त से संसाधन जुटाने के निर्देश दिए गए थे, जो पंचायतों के जरिए होना था। लेकिन, न पंचायतों ने इसमें रुचि ली, न ही विभागीय स्तर पर इस काम को प्राथमिकता दी गई।
नतीजा ये हुआ कि करोड़ों की लागत से बनी ये गोशालाएं वीरान पड़ी हैं। गो संवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वरानंदगिरि का कहना है कि गोशाला निर्माण की योजना कांग्रेस सरकार लेकर आई थी, जल्दबाजी में कई जिलों में ऐसे स्थानों का चयन कर लिया गया, जहां पानी के स्रोत नहीं थे। बिजली की लाइन भी नहीं थी। पानी के इंतजाम के लिए पीएचई को कहा है, जबकि बिजली के लिए विद्युत कंपनियों को कनेक्शन राशि जमा करा दी गई है। अतिक्रमण हटाने का जिम्मे राजस्व विभाग का है।
सबसे ज्यादा संकट बुंदेलखंड, विंध्य और ग्वालियर-चंबल में
बिजली-पानी के अभाव वाली सर्वाधिक गोशालाएं ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड, विंध्य क्षेत्र की हैं। मुरैना जिले में 104 गोशालाओं में से सिर्फ 29 में ही बिजली-पानी के इंतजाम हैं, इनमें से भी सिर्फ 25 का ही संचालन शुरू हो सका है। मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर में 27 गोशालाएं बनी हैं, जिनमें से 14 में ही पानी और बिजली के इंतजाम हैं। 9 जुगाड़ से चल रही हैं, और 5 वीरान पड़ी हैं

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