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बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज:13 साल पहले दवा व उपकरणों की खरीदी में अनियमितता

विभाग ने दागियों को किया पदोन्नत, डॉ. वर्मा डीन भी रहे

सागर – बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज का सरकारी दवा, सामग्री और उपकरणों की खरीद में गड़बड़ी से पुराना नाता है। वर्ष 2011 से 2013 के बीच की गई दवा और उपकरणों की खरीद में भी सरकारी बजट के दुरुपयोग के आरोप प्रबंधन और कर्मचारियों पर लगे थे। 2013 में नियंत्रक महालेखा परीक्षक की जांच में खरीद के 40 मामलों में मेडिकल कॉलेज के 6 डॉक्टरों और दो बाबू पर अनुपयुक्त सामग्री खरीदने के दोष सिद्ध भी हुए।
2015 से मामले में डॉक्टरों और बाबुओं की विभागीय जांच भी चल रही है। नौ साल बाद भी जांच पूरी नहीं हो सकी है। इस दौरान इन डॉक्टरों और बाबुओं पर कार्रवाई के बजाय मेडिकल कॉलेज ने उपकृत किया। जांच के घेरे में आए डॉक्टर अधीक्षक से लेकर डीन पद तक और बाबू तृतीय वर्ग से वर्ग-1 और स्टेनो टाइपिस्ट से स्टेनोग्राफर पद तक पदोन्नत हो गए। इससे जाहिर है कि शुरूआत से ही मेडिकल कॉलेज प्रबंधन दागी और अनियमितता बरतने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों पर मेहरबान है।

12 क्रय आदेश, 17 बिल और 11 नस्तियां जांच के दायरे में

वर्ष 2011 से 2013 के दौरान 12 क्रय आदेश के जरिए ओटी टेबल, लेबर ओटी टेबल, लैंप, कॉर्डियक मॉनीटर, पलंग, गद्दे, चादर, कंबल, एयरकंडीशनर, वेंटीलेटर, अंबु बैग, सक्शन मशीन, ऑक्सीजन पोर्ट, हार्ट अटैक के मरीजों के उपयोग में आने वाली जीवन रक्षक दवाइयां सहित अस्पताल के उपयोग में आने वाली अन्य दवाइयां और इंजेक्शन खरीदकर बजट राशि का दुरुपयोग किया गया। यह क्रय आदेश, इनकी 11 नस्तियां और 17 बिल जांच के दायरे में हैं।

इन पर चल रही विभागीय जांच, फिर भी पा गए प्रमोशन

डाॅ. एके रावत – सितंबर 2015 से अक्टूबर 2015 तक डीन रहे। मामले की जांच में गंभीरता नहीं दिखाई। जांच में फंसे स्टेनो टाइपिस्ट मो. नासिर को नियम विरुद्ध पदोन्नत कर स्टेनोग्राफर बना दिया। सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

डॉ. मनोज इंदुरकर -मेडिसिन विभाग में तत्कालीन सहायक प्राध्यापक थे। कॉलेज में आईसीयू वार्ड शुरू होने से पहले ही इसमें इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की खरीदी की प्रक्रिया में शामिल रहे। इन्हें रीवा मेडिकल कॉलेज का डीन बना दिया।

डॉ. सुमित रावत -तत्कालीन सहायक प्राध्यापक और खरीदी के समय में स्टोर प्रभारी थे। जिम्मेदार पद पर रहते हुए अनुपयोगी सामग्री की खरीदी की जानकारी शासन को नहीं दी। चुपचाप सामग्री का भंडारण कर लिया।

मोहम्मद नासिर -स्टेनो टाइपिस्ट और क्रय शाखा प्रभारी रहे। उपकरणों के संस्थापित होने के संबंध में कोई टीप अंकित नहीं की। सामग्री के क्रय आदेश की शर्तों को डीन के संज्ञान में लाए बिना भुगतान देयकों की नोटशीट चलाई और भुगतान कराया।

डॉ. एसएस मिश्रा -अक्टूबर 2011 से अक्टूबर 2013 तक डीन रहे। अनुपयुक्त दवा और उपकरणों की खरीदी की गई। डीन रहते हुए अनुपयोगी सामग्री की खरीदी पर रोक नहीं लगाई। वर्तमान में सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

डॉ. आरएस वर्मा -तत्कालीन अस्पताल अधीक्षक थे। जिम्मेदार पद पर होने के बाद भी अनुपयोगी सामग्री की खरीदी प्रक्रिया में शामिल रहे। जांच के घेरे में होने के बाद भी विभाग ने इन्हें पदोन्नत कर बीएमसी का डीन बना दिया।

डॉ. निधि मिश्रा -तत्कालीन सहायक प्राध्यापक और गायनी विभाग प्रभारी लेबर ओटी की शुरूआत से पहले ही सामग्री की खरीदी प्रक्रिया में शामिल रहीं। वर्तमान में बीएमसी से इस्तीफा दे चुकी हैं।

दिनेश साहू -तत्कालीन सहायक वर्ग-3 क्रय शाखा लिपिक रहे। सामग्री खरीदी का ड्राफ्ट तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। इन्हें 2015 में नियम विरुद्ध सहायक वर्ग-2 पद पर पदोन्नत कर दिया। वर्ष 2023 में पुन: सहायक वर्ग-1 पर पदोन्नत कर दिया।

9 साल से चल रहे बयान, नतीजा नहीं निकला
शासन द्वारा 2015 से शुरू की गई विभागीय जांच वर्तमान में भी जारी है। हर साल दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों के लगाए गए आराेपों पर बयान और पक्ष लिए जा रहे हैं। जांच के दौरान मेडिकल कॉलेज में 7 डीन भी बदल चुके हैं। लेकिन अभी तक जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है। शासन की इसी लेटलतीफी का फायदा उठाकर आरोपों में फंसे कर्मचारियों और अधिकारियों ने नियम विरुद्ध पदोन्नति पा ली। असरदार पदों पर बैठने के बाद कॉलेज में होने वाली नई खरीदी के मामलों में अनियमितता और गड़बड़ी कर रहे हैं। इसके अलावा जांच के दायरे में आई खरीदी के दस्तावेजों में भी हेराफेरी कर साक्ष्य मिटाने के प्रयास कर रहे हैं।

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