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इंदौर की स्वास्थ्य सेवाएं 50 फीसदी कमीशनखोरी की शिकार

प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस ने लगाया आरोप- स्वास्थ्य मंत्रालय बना बीजेपी का एटीएम,आयुष्मान योजना फ्लॉप शो

इंदौर. – अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय प्रवक्ता चरण सिंह सपरा और राष्ट्रीय सचिव एवं प्रभारी कुलदीप इंदौरा ने शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में शहर में स्वास्थ्य सेवाओं के मुद्दे पर बात की। उन्होंने कहा कि शासकीय अस्पतालों की हालत खस्ता है। अनेक वर्षों से इंदौर के जिला अस्पताल का काम लंबित है। सारा लोड एमवाय हॉस्पिटल पर लाद दिया गया है। आस पास के जिले के लोग भी यहीं पर भेज दिए जाते हैं। आए दिन संसाधनों की कमी के कारण मरीज के परिजन और डॉक्टर के बीच कहासुनी भी होती रहती है। हालत ये है कि कई जगह पर डॉक्टर हैं तो अस्पताल नहीं हैं और अस्पताल है तो डॉक्टर नहीं है या फिर कहा जाए तो दवाई भी नहीं है। सरकार का स्वास्थ्य मिशन किसी ढकोसले से कम नहीं है।
यह सिर्फ इंदौर ही नहीं मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश की जनता ने देखा है। मोहल्ला क्लिनिक की तर्ज पर संजीवनी क्लिनिक खुद बीमार अवस्था में है। मेधावी छात्र योजना फ्लॉप हो गई है। एम्बुलेंस सर्विस कमी हुई है। पैथोलॉजी जांच के लिए हब एंड स्पोक मॉडल और टेली कंसल्टेंशन में रोज भ्रष्टाचार हो रहा है। सरकारी अस्पताल में ना तो हेल्प डेस्क है ना ही काउंसलर है। अस्पताल इक्विपमेंट खरीदने में करोड़ों का भ्रष्टाचार दवाइयां खरीदने और अनियमितता भाजपा नेता प्रायोजित दवा कंपनियों को प्राथमिकता दी जाती है।
50% कमीशन खोरी के खुले उदाहरण स्वास्थ्य विभाग में नजर आते है। नर्सिंग घोटाले की गूंज पूरे देश में सुनाई देती है। कई सारे इम्तिहान बीएचएमएस, डेंटल, फार्मेसी इत्यादि परीक्षाएं काफी विलंब से होती है और जब भी होती है तो उसमें भ्रष्टाचार ज्यादा होता है। पिछले 5 वर्षों में डेंटल और पैरामेडिकल स्टाफ हेतु एनएचएम यानि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग यानी एमपीपीएससी द्वारा परीक्षाओं की प्रणाली या तो विलंब हुआ या फिर गड़बड़ी हुई 7500 डॉक्टरों की मंजूर पदों के विरुद्ध सिर्फ 3500 डॉक्टर कम कर रहे है। बाकी पद खाली है। पैरामेडिकल स्टाफ भी मात्र 50% ही है सरकारी हॉस्पिटल मानो कि बिना देवताओं के मंदिर जैसे बने हुए है।
मध्य प्रदेश में डॉक्टर का सैलरी स्ट्रक्चर कमजोर है। बगल के राज्यों से अगर तुलना की जाए महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली इत्यादि राज्यों में 90,000 रुपए प्रतिमाह है, लेकिन मध्य प्रदेश में मात्र 60,000: मासिक सैलरी डॉक्टर की है। डॉक्टर के लिए शिवराज सरकार की डायनेमिक एश्योर्ड करियर प्रोग्रेशन इस योजना का मंत्र चुनावी स्टंट के लिए वापरा गया। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सिविल हॉस्पिटल जिला अस्पताल के डॉक्टर के लिए नर्क से भी बत्तर निवासियों की व्यवस्था है।
मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर और पब्लिक हेल्थ सर्विस के डॉक्टर के लिए दोहरे मापदंड है।मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर को एनपीए अलाउंस भी मिलता है और वह निजी प्रैक्टिस भी कर सकता है। यह सुविधा पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट के डॉक्टर को नहीं है यानी यह सौतेला व्यवहार मध्य प्रदेश की सरकार द्वारा हो रहा है। आशा वर्कर्स की अगर बात करें, तो आशा वर्कर की स्थिति और भी धन्य है। उन्हें ना तो परमानेंट किया गया है और ना ही उनकी सैलरी बड़ाई गई।यदि बात टीकाकरण सिस्टम की करे तो टीकाकरण सिस्टम भी बहुत कमजोर है और इस वजह से शिशु मृत्यु दर अगर तुलना हो तो मध्य प्रदेश पूरे देश में पहले स्थान पर है।

प्रदेशवासियों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी हम लेंगे, राजस्थान बड़ा उदाहरण

कांग्रेस पार्टी के वचन पत्र द्वारा घोषित

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