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पर्यावरणविद् पांडेय ने कहा-एनडीएमए या एसडीएमए से साइंटिफिक जांच कराएं

गाजा में हुए न्यूक्लियर और टीएनटी बमों से ज्यादा ताकतवर था हरदा का क्लस्टर बम धमाका

भोपाल/हरदा – हरदा की पटाखा फैक्ट्री में हुआ विस्फोट, क्लस्टर बम एक्सप्लोजन था, जो कई सौ सुतली बमों के एकसाथ फटने के अलावा टीएनटी (ट्राइनाइट्रोटॉलीन) की वजह से भी होने का अनुमान है। घटना स्थल से ढाई किमी दूर तक दीवारों में आई दरारों से पता चलता है कि एक्सप्लोजन से लगभग 300 डेसीबल का धमाका हुआ हुआ होगा, जो जिससे रिएक्टर स्केल पर 5 तीव्रता आर्टिफिशियल भूकंप आया होगा। बेसमेंट में हुए इस एक्सप्लोजन से धरती के भीतर की क्रेक आने की आशंका है, जिसके कारण 400 मीटर की दूरी पर बह रही नर्मदा की सहायक नदी अजनाल के रिवरकोर्स (बहाव मार्ग) में भविष्य में बदलाव आ सकते हैं।
यह दावा है पर्यावरणविद् और पूर्व प्रोफेसर डॉ. सुभाष पांडेय का। डॉ. पांडेय ने रविवार को प्रेस कॉन्फेरेंस कर हरदा विस्फोट की साइंटिफिक जांच नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (एनडीएमए) या मप्र स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (एसडीएमए) से कराने की मांग की, ताकि विस्फोट के सही कारण और उससे पर्यावरणीय असर का पता चल सके।
पांडेय ने एक्सप्लोजन से जुड़े ग्लोबल रिसर्च पेपर का हवाला देते हुए बताया कि गाजा पट्टी में इजराइल की ओर से इस्तेमाल किए जा रहे न्यूक्लियर बम और टीएनटी बमों से 210 डेसीबल आवाज के धमाके होते हैं। लेकिन उनका असर इतना नहीं होता कि 1 से 2 किमी दूर तक कंपन पैदा हो सके। लेकिन हरदा के बैरागढ़ गांव के विस्फोट से 2.5 किलोमीटर दूर हरदा शहर के घंटाघर इलाके में मकानों में दरारों से स्पष्ट होता है कि इस विस्फोट की तीव्रता 210 डेसीबल से कई ज्यादा थी।

फैक्ट्री के अंदर मारे गए लोगों के अवशेष मिलने की संभावना नहीं

डॉ. पांडेय के मुताबिक फैक्ट्री में विस्फोट के समय जो भी व्यक्ति अंदर होगा उसके अवशेष मिलने की कोई संभावना नहीं हैं। पांडेय ने बताया कि इंसीनरेटर (भस्मक) का अधिकतम तापमान 1200 डिग्री सेल्सियस होता है जिसमें बायो-मेडिकल वेस्ट को जलाया जाता है, जिसमें राख के सिवा कुछ नहीं मिलता। ऐसे में क्लस्टर बम एक्सप्लोजन में तापमान 1500 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा जा सकता है, इसलिए जो लोग फैक्ट्री के भीतर विस्फोट की जद में आने वालों का पता लगना भी असंभव है।

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