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मध्यप्रदेश में सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 68 फीसदी पद खाली, 29 फीसदी तक डॉक्टरों की कमी

मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में कार्डियोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट समेत एक भी स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं

भोपाल – राजधानी से सटे विदिशा में तीन साल पहले 550 करोड़ की लागत से नया मेडिकल कॉलेज और 300 करोड़ की लागत से नया जिला अस्पताल बना है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नाम पर बनी इस शानदार चमचमाती बिल्डिंग को देखकर आपकी आंखों को झूठी तसल्ली और भ्रम तो हो सकता है, लेकिन गंभीर रूप से बीमारी में यहां पहुंच गए तो अच्छा इलाज मिलने की गारंटी नहीं है।
मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल दोनों में ही एक भी कार्डियोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट समेत एक भी स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं हैं। एक्सीडेंट में कोई हेड इंजरी का मरीज आ जाए तो उसे भोपाल ही रैफर कर दिया जाता है। यहां ऑपरेशन थिएटर तो बना है, लेकिन उसमें ऑपरेशन करने वाला कोई सर्जन नहीं हैं। डीन डाॅ.सुनील नंदीश्वर स्वीकार करते हैं कि बिल्डिंग से कोई अस्पताल सुपर स्पेशिलिटी नहीं बन जाता, विशेषज्ञ डॉक्टरों के अभाव में हर रोज तमाम मरीजों को भोपाल एम्स या हमीदिया के लिए रैफर करना पड़ता है। ये हाल अकेले विदिशा के नहीं हैं, बल्कि प्रदेश के आधे से अधिक मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पतालों के यही हाल हैं। मप्र में सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 68 फीसदी और चिकित्सा अधिकारियों के 38 फीसदी पद खाली हैं। प्रदेश के 13 मेडिकल कॉलेजों के हालात भी बेहतर नहीं हैं, यहां 2814 टीचिंग फैकल्टी वाले विशेषज्ञ डॉक्टरों की पोस्ट हैं, लेकिन उन पर सिर्फ 1800 डॉक्टर ही मौजूद हैं।
प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 43 प्रतिशत, जो देश में सर्वाधिक
केंद्र सरकार के रूरल हेल्थ स्टेटिक्स रिपोर्ट 2022 के मुताबिक मप्र के ग्रामीण इलाकों में उप स्वास्थ्य केंद्रों में 4134 (29%), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 4045 (45%) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 245 (42%) में डॉक्टरों के पद खाली पड़े हैं। यहां स्त्री रोग विशेषज्ञ 332 डॉक्टरों की जरूरत है, लेकिन सिर्फ 39 ही ग्रामीण इलाकों में पदस्थ हैं। पीडियाट्रिक्स की 332 पोस्ट पर सिर्फ 13 ही बाल एवं शिशु रोग पदस्थ हैं। यही कारण हैं कि मप्र में शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) 43% हैं जो देशभर में सर्वाधिक है। मप्र में ग्रामीण इलाके में आईएमआर 47% तक है, जबकि शहरों में यह 30% हैं।
पिछले चार साल में मप्र का कुल हेल्थ बजट में करीब साढ़े चार हजार करोड़ से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के बजट करीब 12 हजार करोड़ पहुंच गया है। वहीं मेडिकल एजुकेशन का बजट 2 हजार करोड़ से बढ़कर 3 हजार करोड़ को पार कर गया है।

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