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सिंधिया के बीजेपी में जाने से कई सीटों पर भितरघात का खतरा

सिंधिया समर्थकों के विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के पुराने नेता भी मैदान में ताल ठोकने को तैयार

भोपाल – ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में लाकर भाजपा ने सरकार भले ही बना दी लेकिन अब सीएम शिवराज के लिए उन सीटों पर कठिनाई है जहां सिंधिया समर्थक टिकट के दावेदार हैं। दैनिक भास्कर की एक विशेष रिपोर्ट में बताया गया है कि इन सारी सीटों पर भाजपा के पुराने नेता भी मैदान में आने की तैयारी कर रहे हैं।बीजेपी को डर है कि मध्यप्रदेश में नाराज नेताओं के चलते उसका विजय रथ रुक सकता है। यही कारण है कि वह अपने बागी और पुराने नेताओं की घर वापसी करा रही है। ओबीसी नेता प्रीतम लोधी के बाद सिद्धार्थ मलैया की पार्टी में वापसी हो गई है। सिद्धार्थ का राजनीतिक वनवास 13 महीने में ही खत्म कर उनका निलंबन वापस ले लिया गया है। पार्टी प्रीतम को भी 6 महीने भी बाहर नहीं रख पाई, जबकि दोनों नेताओं ने खुलेआम बगावत की थी। हाल ही में केंद्रीय नेतृत्व को मिली 14 नेताओं की रिपोर्ट में कहा गया है कि कई नेता ऐसे हैं जो फिलहाल शांत हैं, लेकिन इनकी नाराजगी दूर नहीं की गई तो चुनाव के दौरान भितरघात से इनकार नहीं किया जा सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक उन सीटों पर भितरघात होने का खतरा अधिक है, जहां कांग्रेस से आए मंत्री-विधायक काबिज हैं। यही वजह है कि दमोह में मजबूत पकड़ रखने वाले पूर्व मंत्री जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ की पूरे सम्मान के साथ वापसी हुई। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र में ओबीसी वोट बैंक को साधे रखने के लिए प्रीतम लोधी की घर वापसी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा की मौजूदगी में कराई गई। इन दोनों नेताओं को पार्टी ने निलंबित कर दिया था।

बीजेपी सूत्रों का कहना है कि 2018 वाली गलती पार्टी फिर से दोहराना नहीं चाहती है। विधानसभा के चुनाव से पहले बीजेपी अपनी हर कमजोरी को मजबूती में बदल लेना चाहती है। यही कारण है कि जो लोग पार्टी छोड़ कर गए हैं या जिन्हें पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखाया था, सभी की घर वापसी की कोशिशें तेजी से चल रही हैं।

पिछले महीने भोपाल प्रवास के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा ने कोर ग्रुप की बैठक में कहा कि तंत्र पर विश्वास कम किया जाए। कार्यकर्ता पर विश्वास करना ज्यादा ठीक है।

सांची में वर्तमान में नई और पुरानी भाजपा कार्यकर्ताओं में मनमुटाव है। यहां डॉ. प्रभुराम चौधरी ने सागर रोड पर श्रीराम परिसर नाम से कार्यालय बना रखा है। दूसरा है जिला भाजपा कार्यालय बस स्टैंड के पास स्थित है। श्रीराम परिसर में कोई कार्यक्रम होता है, तो वहां पुराने भाजपाई नहीं जाते। असल में उनका मानना होता है कि श्रीराम परिसर सिर्फ सिंधिया समर्थक भाजपाइयों के लिए है।

पूर्व मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने 2017 में चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया था। ऐसे में पार्टी ने 2018 में कांग्रेस के डॉ. प्रभुराम चौधरी के सामने शेजवार के बेटे मुदित को मैदान में उतारा था, लेकिन वे चुनाव हार गए थे। उपचुनाव में डॉ. चौधरी बीजेपी की टिकट पर जीत गए, लेकिन गौरीशंकर शेजवार और मुदित को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में नोटिस देकर स्पष्टीकरण मांगा था। संगठन को इसका 7 दिन में जवाब मिल गया था।

सुरखी : भाजपा के पूर्व नेता ही कर रहे मंत्री से जुड़े खुलासे

सुर्खी में नवंबर 2021 के उपचुनाव के बाद से परिवहन व राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत की नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह के रिश्तेदार और बीजेपी किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष रहे राजकुमार सिंह ठाकुर ‘धनौरा’ के साथ राजनीतिक वर्चस्व की जंग चल रही है। पिछले साल धनौरा को बीजेपी से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद तो धनौरा ने मंत्री राजपूत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। ससुराल से मंत्री को दान में मिली 50 एकड़ जमीन के मामले का खुलासा उन्होंने ही किया।

सूत्रों का कहना है कि दोनों नेताओं के बीच सुलह कराने की सत्ता-संगठन की तरफ से कई बार कोशिश हो चुकी हैं, लेकिन बात अब तक नहीं बन पाई है। पार्टी को पूरी आशंका है कि चुनाव में इसका नुकसान होगा। लिहाजा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित पार्टी के बड़े नेताओं ने मोर्चा संभाला है।

मुरैना : कंषाना हारे तो भितरघात के आरोप लगाए, फिर वही आशंका

सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने के बाद रघुराज कंषाना बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस के राकेश मावई से हार गए। रघुराज ने बीजेपी नेताओं पर भितरघात के आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि मेरे लिए बीजेपी कार्यकर्ताओं ने जी तोड़ मेहनत की है, लेकिन सेकंड लाइन के नेताओं ने उपचुनाव में मेरा खुलकर विरोध किया। चुनाव के बाद उन्होंने 15 से 20 बीजेपी नेताओं की सूची बनाकर प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा को सौंपी थी।

अंबाह : पूर्व विधायक बंशीलाल से मिल रही चुनौती

मुरैना जिले की अंबाह से विधायक कमलेश जाटव मूलत: भाजपाई हैं। सिंधिया की वजह से कांग्रेस में शामिल हुए थे। सिंधिया भाजपा में आए तो वे भी लौट आए, अब भाजपा के पूर्व विधायक बंशीलाल बीजेपी से टिकट की जुगत में हैं।

डबरा : इमरती देवी के ऐसे बयान और काम जिससे नरोत्तम पर अटैक

बीजेपी में शामिल होने के बाद इमरती देवी उपचुनाव में डबरा से हार गईं। गृहमंत्री नरोत्तम के खेमे से राजू खटीक, डबरा नगर पालिका की पूर्व अध्यक्ष आरती मौर्य टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। राजू खटीक की पत्नी जिला पंचायत सदस्य हैं। चुनाव हारने के बाद से बीजेपी के पुराने कार्यकर्ताओं और इमरती के बीच अक्सर टकराव की स्थिति बन जाती है। खास बात यह है कि इमरती देवी समय-समय पर ऐसे बयान दे रही हैं, जिससे नरोत्तम मिश्रा परेशानी में आ जाते हैं।

सुवासरा : मंत्री डंग ने पूर्व विधायक को ही दरकिनार कर दिया

मध्यप्रदेश में तख्तापलट के समय सबसे पहले इस्तीफा देने वालों में मंदसौर के सुवासरा से कांग्रेस विधायक रहे हरदीप सिंह डंग थे। हरदीप सिंह डंग के सामने चुनाव लड़ चुके बीजेपी के पूर्व विधायक राधेश्याम पाटीदार से भी रिश्ते अच्छे नहीं बन पाए हैं। कई बार सरकार और दूसरे आयोजनों में आमंत्रण पत्र से राधेश्याम पाटीदार का नाम तक हटा दिया। उन्हें मंच पर जगह भी नहीं दी गई। आयोजनों से दरकिनार किया जाने लगा। इस वजह से दोनों के समर्थकों में गुस्सा है।

मुंगावली : बृजेंद्र सिंह यादव ने जिन्हें हराया वे अब भी साथ नहीं

अशोकनगर जिले के मुंगावली से विधायक और प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री बृजेंद्र सिंह के साथ उनके पुराने समर्थक ही दिखते हैं, जबकि मूल भाजपा कार्यकर्ता अलग राह पर हैं। मुंगावली में 5 साल में दो बार विधानसभा चुनाव हुए हैं। पहले स्वर्गीय देशराज सिंह की पत्नी बाईसाहब यादव बीजेपी के टिकट पर बृजेंद्र सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ीं, वह हार गई थीं। दूसरे चुनाव में बृजेंद्र सिंह ने बीजेपी के केपी यादव को हराया। उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर लड़े और जीते। अब दोनों बीजेपी में हैं, लेकिन आज तक एक नहीं हो पाए हैं।

अनूपपुर : मंत्री बिसाहूलाल का पूर्व विधायक रामलाल से टकराव

अनूपपुर में भाजपा दो गुटों में बंटी है। भाजपा के पूर्व विधायक रामलाल और प्रदेश सरकार में खाद्य मंत्री बिसाहूलाल। हर मंच पर दोनों के बीच टकराव दिखता है। बिसाहूलाल सिंह के किसी भी कार्यक्रम में रामलाल के पोस्टर- बैनर से गायब ही रहते हैं। जब बिसाहूलाल सिंह ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी, तो उनके पहले कार्यक्रम में रामलाल का नाम पोस्टर व बैनर से गायब था। पूर्व विधायक रामलाल भी अपने ही सरकार के खिलाफ कई बार मोर्चा खोल चुके हैं।

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