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सरकारी अस्पतालों को बेचने की तैयारी

गुना – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के जिला सचिव मनोहर मिरोटा ने एक बयान जारी कर कहा है कि मध्य प्रदेश सरकार की ओर से हर जिले में मेडिकल कॉलेज के लिए पीपीपी मॉडल के तहत निवेशकों प्रस्ताव दिया गया है। इसके तहत अब निवेशक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत सरकारी जिला अस्पतालों में मेडिकल कॉलेज खोल सकते हैं। मध्य प्रदेश कैबिनेट का यह फैसला बेहद गैर जिम्मेदाराना और जनता के खिलाफ है। यह पिछले दरवाजे से मेडिकल सुविधाओं को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी है।
मनोहर ने कहा कि राज्य के सरकारी अस्पतालों को निजी हाथों में सौंपने के इस निर्णय पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) गहरी चिंता और विरोध व्यक्त करती है। यह निर्णय न केवल मध्य प्रदेश के खस्ताहाल मेडिकल ढांचे को और अधिक कमजोर करेगा, बल्कि यह जनता को उनके मौलिक अधिकार.स्वास्थ्य सुविधाओं से भी वंचित करेगा। सरकार ने बड़ी चालाकी से पूंजीपतियों के हितों की रक्षा के लिए स्वास्थ्य सेवाओं और सरकारी संपत्ति की को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी की है। एक तरफ निवेशकों को सस्ती जमीन मुहैया कराई जाएगी। साथ ही उन्हें मेडिकल कॉलेज के नाम पर जिला स्तर पर मध्यवर्गीय परिवारों को लूटने की खुली छूट होगी। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए वे जिला अस्पतालों से गठजोड़ करेंगे और फिर अस्पतालों पर सीधा कब्जा निजी कंपनियों का होगा। जहां गरीबों के लिए बिना सरकारी मदद के इलाज कराना संभव ही नहीं हो पाएगा।
जिला सचिव ने कहा कि सोमवार को पीपीपी मॉडल के तहत सरकारी जिला अस्पतालों में मेडिकल कॉलेज खोलने का कैबिनेट ने जो प्रस्ताव पास किया है, वह प्रदेश के नागरिकों के साथ धोखा है। इसके जरिये गरीबों को स्वास्थ्य के नाम पर आयुष्मान भारत योजना के तहत प्रदान किए जाने वाले 5 लाख रुपये के बीमा कवच को निजी हाथों में सौंपना एक तरह से जनता के टैक्स के पैसे को निजी कंपनियों को देने की साजिश है। अगर हम मध्य प्रदेश में जारी किए गए आयुष्मान कार्डों की संख्या को देखें, जो कि लगभग 39,384,354 है। अगर प्रत्येक कार्डधारक के 5 लाख रुपये की गणना करें, तो यह राशि अरबों में पहुंच जाती है। यह सरकारी पैसा है जो सीधे निजी कंपनियों के हाथों में जाएगा।
इस मॉडल के तहत निवेशक जिला अस्पताल के कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करेंगे। मेडिकल कॉलेज और अस्पताल एक साथ चलने लगेंगे तो 75 प्रतिशत बिस्तर गरीबों को उपलब्ध कराने की बात कही जा रही है, लेकिन इसके लिए भी आयुष्मान कार्ड के जरिये सरकारी पैसा उनके खाते में जाएगा। निवेशक बचे हुए 25 प्रतिशत बिस्तरों का अपने हिसाब से व्यावसायिक इस्तेमाल कर सकेंगे। इस तरह उन्हें दोनों हाथों से लूट का लाइसैंस मिल जाएगा।
उन्होंने कहा कि सीपीआई मांग करती है कि मध्य प्रदेश सरकार इस फैसले को तुरंत वापस ले और स्थानीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करे। स्वास्थ्य सेवाएं एक जन सेवा हैं और इसे निजी लाभ के लिए नहीं बेचा जाना चाहिए। जिला सचिव मनोहर ने कहा कि हम आम जनता से भी अपील करते हैं कि वे इस निर्णय के खिलाफ अपनी आवाज उठाएं और सरकार को यह संदेश दें कि स्वास्थ्य सेवाएं उनका अधिकार हैं, न कि किसी निजी संस्था का व्यापार। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण न केवल एक आर्थिक मुद्दा है, बल्कि यह एक सामाजिक न्याय का प्रश्न भी है। जब स्वास्थ्य सेवाएं निजी हाथों में चली जाती हैं, तो उनका मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना हो जाता है, न कि रोगी की देखभाल। इससे गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने में कठिनाई होती है, क्योंकि वे उच्च लागत को वहन नहीं कर सकते। इस प्रकार, निजीकरण से समाज के एक बड़े हिस्से को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित करने का खतरा होता है।

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