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नाला और जंगल ने रोकी 43 छात्राओं की पढ़ाई

गांव से 3Km दूर है स्कूल, छात्राएं बोलीं- जंगल में कुछ हो जाए तो क्या करेंगे?

जबलपुर – जबलपुर के बहोरीपार गांव की 43 छात्राओं ने आठवीं के बाद पढ़ाई को छोड़ दी है। कारण गांव से 3 KM दूर स्कूल का होना और जंगल-नाले के रास्ते स्कूल जाना।
आठवीं पास करने वाली छात्राओं का कहना है कि गांव में अगर स्कूल होता तो लड़कियों को 8वीं के बाद पढ़ाई नहीं छोड़नी पड़ती। बाहर गांव पढ़ने जाओ तो लौटते समय अंधेरा हो जाता है। रास्ते में कई तरह के लोग मिलते हैं, कई बार छेड़छाड़ भी हुई, लिहाजा डर के कारण हिम्मत नहीं पड़ती है कि बरगी तक जाएं।
गांव से तीन किलोमीटर दूर मुहास हाईस्कूल है, पर वहां जाने का रास्ता भी सुनसान होता है। बारिश में तो नाला आ जाता है, जिसके कारण तीन माह तक स्कूल नहीं जा पाते।
गांव में 12वीं तक स्कूल खोलने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित, कलेक्टर, डीईओ को भी आवेदन दिया जा चुका है। अभी तक इस पर कुछ भी नहीं हुआ है। हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जब जबलपुर आए थे तो उन्हें भी इस संबंध में शिकायत की गई थी।
जबलपुर-नागपुर हाईवे से दो किलोमीटर दूर बहोरीपार गांव में एकमात्र स्कूल है पहली से आठवीं तक। आठवीं से आगे की पढ़ाई के लिए गांव से 10 किलोमीटर दूर बरगी या फिर 3 किलोमीटर जंगल के रास्ते से मुहास गांव जाना होता है। लड़के तो साइकिल से बरगी या फिर मुहास जा रहे हैं, पर लड़कियों ने पढ़ाई छोड़ दी है। छात्राओं का कहना है कि अगर बरगी जाना है तो गांव से हाईवे तक दो किलोमीटर पैदल जाओ, इसके बाद बस से 20 रुपए किराया लगाकर 8 किलोमीटर दूर बरगी जाना होता है। फिर अनहोनी की भी आशंका रहती है।

तीन साल में 52 छात्राएं पास हुईं, 43 ने पढ़ाई छोड़ी

तीन साल में बहोरीपार गांव में रहने वाली 52 लड़कियों ने आठवीं कक्षा पास की, इनमें से 8 छात्राएं ही आगे की पढ़ाई के लिए बरगी गईं। 43 छात्राओं ने पढ़ाई छोड़कर अपने माता-पिता के साथ मजदूरी करना शुरू कर दिया है।
छात्रा संगीता यादव का कहना है कि उसने आठवीं तक गांव के ही स्कूल से पढ़ाई की। आगे भी पढ़ने की इच्छा थी। पर माता-पिता ने अनुमति नहीं दी। गांव की कुछ लड़कियां छेड़खानी का शिकार भी हुईं, इस वजह से पिताजी ने स्कूल जाना बंद करवा दिया। संगीता का कहना है कि अगर गांव में स्कूल होता तो शायद मेरी जैसे लड़कियां 12वीं तक तो पढ़ ही लेतीं।
केशर का कहना है कि आठवीं पास करने के बाद इच्छा थी कि आगे भी पढ़ाई करना है। गांव से तीन किलोमीटर दूर मुहास गांव है। बरगी की दूरी ज्यादा थी, पर मुहास हाई स्कूल तक जाने के लिए सुनसान सड़क के साथ-साथ एक बड़ा नाला पार करना होता है। बारिश में तीन माह तक पानी भरा रहता है। सुनसान सड़क तो जैसे-तैसे पार कर लो, पर नाले में भरे पानी के बीच उसे पार करना मुश्किल है, यही कारण है कि स्कूल जाना बंद हो गया।
संतोषी ने भी आठवीं तक पढ़ाई की, इसके बाद उन्होंने भी छोड़ दी। कम उम्र में ही संतोषी की शादी कर दी गई। ना चाहते हुए भी संतोषी को शादी करना पड़ा। ग्रामीणों का कहना है कि अगर गांव में ही 12वीं तक स्कूल हो जाए तो निश्चित रूप से बच्चियों के स्कूल छोड़ने की समस्या हल हो जाएगी।
ग्रामीण नेतराम साहू का कहना है कि गांव से दो किलोमीटर बच्चियों को पैदल जाना होता है। स्कूल से लौटते-लौटते शाम हो जाती है। बच्चियों के साथ छेड़खानी भी हुई, पर बच्चियों ने कभी घर में इसलिए नहीं बताया कि उन्हें अपनी और अपने परिवार की इज्जत का डर रहता है।
पूर्व सरपंच सेवाराम पटेल बीते पांच सालों से बहोरीपार गांव में 12वीं तक स्कूल करवाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। जबलपुर कलेक्टर से लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी गुहार लगा चुके हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जब जबलपुर आए थे तो 12वीं तक स्कूल करवाने का आवेदन दिया है। सेवाराम का कहना है कि अगर बहोरीपार गांव में स्कूल बन जाता है तो आसपास के दर्जनों गांव को सहूलियत हो जाएगी।

विधायक बोले- जानकारी नहीं है, पता करवाता हूं

बरगी विधानसभा के विधायक नीरज सिंह को ये जानकारी ही नहीं है कि उनकी विधानसभा के एक गांव की कई बच्चियों ने पढ़ाई छोड़ दी है। विधायक नीरज सिंह का कहना है कि मुझे अभी इसकी जानकारी नहीं है। पता करवा लेते हैं।

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