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अल्जाइमर रोग के प्रति जागरुकता बढ़ाने की जरूरत

नई दिल्ली। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने बुधवार को कहा कि अल्जाइमर रोग और मनोभ्रंश (डिमेंशिया) से पीड़ित लोगों को हमारे समर्थन की जरूरत है। इस संबंध में जागरुकता बढ़ाने की जरूरत है। विश्व अल्जाइमर दिवस के अवसर पर उन्होंने लोगों से अल्जाइमर रोग और मनोभ्रंश से पीड़ित लोगों के प्रति प्यार, समर्थन और देखभाल करने का संकल्प लेने की अपील की।

क्या है अल्जाइमर बीमारीः 

अल्जाइमर एक ऐसी बीमारी है जो मेमोरी यानी याद रखने की क्षमता को नष्ट कर देती है। ज्यादातर यह बीमारी बुजुर्ग लोगों को होती है, लेकिन इसके शुरुआती लक्षण पहले ही दिखाई देने लगते हैं। आमतौर पर अल्जाइमर से ग्रसित व्यक्ति को बातें याद रखने में कठिनाई हो सकती हैं और फिर धीरे-धीरे व्यक्ति अपने जीवन में महत्वपूर्ण लोगों को भी भूल जाता है। अल्जाइमर रोग डिमेंशिया (मनोभ्रंश) का सबसे आम कारण है। अल्जाइमर रोग में, मस्तिष्क की कोशिकाएं कमजोर होकर नष्ट हो जाती हैं, जिससे स्मृति और मानसिक कार्यों में लगातार गिरावट आती है। वर्तमान समय में अल्जाइमर रोग के लक्षणों को दवाओं और मैनेजमेंट स्ट्रेटेजी के द्वारा अस्थायी रूप से सुधारा जा सकता है। इससे अल्जाइमर रोग से ग्रस्त इंसान को कभी-कभी थोड़ी मदद मिलती है, लेकिन अल्जाइमर रोग का कोई इलाज नहीं है, इसलिए जितनी जल्दी हो सके सहायक सेवाओं का सहारा लेना जरूरी होता है।

जयपुर गोल्डन अस्पताल की एमएस डॉ. सुजीता सिंह बताती हैं कि अल्जाइमर एक दिमाग की प्रोग्रेसिव बीमारी है। इसमें मस्तिष्क सिकुड़ने लगता है। ऐसा उम्रदराज लोगों के साथ ज्यादा होता है। वे बताती हैं कि आजकल इस बीमारी के बढ़ने के पीछे लोगों में बढ़ता तनाव और एक साथ कई काम करने की होड़ है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते लोगों में तनाव बढ़ रहा है। सोशल सर्कल खत्म हो रहा है, इमोशनल बोंडिंग भी खत्म हो रही है। नींद पूरी नहीं होती, एंजाइटी बढ़ रही है। लोगों का एक दूसरे पर भरोसा भी खत्म हो रहा है। इन सभी कारणों से लोग तनाव में रहते हैं।क्या है उपायः डॉ. सुजीता बताती हैं कि अल्जाइमर का कोई इलाज नहीं है, लेकिन शुरुआती दौर में दवाओं और मेडिटेशन के माध्यम से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। लोगों को खुश रहने के साथ योग और मेडिटेशन का सहारा लेना चाहिए।

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