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बीजेपी के लिए आसान नहीं 400 पार, नजर आ रही है 400 सीटों पर हार

नई दिल्ली – लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अबकी बार 400 पार का नारा जरूर दे दिया है, लेकिन अंदरखाने की माने तो बीजेपी की डगर आसान नजर नहीं आ रही है। भाजपा की भीतरी सूत्रों का कहना है कि 400 दूर की बात है मौजूदा सीटें बचाना भी अब मुश्किल हो गया है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि कई राज्यों में अपना चरम छू चुकी बीजेपी के लिए पिछले चुनावों के परिणाम को दोहराना लगभग नामुमकिन सा है। इन राज्यों में भाजपा के खिलाफ बेतहाशा एंटी इनकंबेंसी है। वहीं दक्षिण भारत के कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्य भी इस बार बीजेपी के हाथ से खिसक चुके हैं।
सूत्रों का कहना है कि बिहार में बीजेपी ने नीतीश को अपनी तरफ कर इंडिया गठबंधन पर जो मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश की थी, उसका भी बीजेपी को कोई खास लाभ नजर नहीं आ रहा है। जिस नीतीश को बीजेपी ने असेट समझा था, दरअसल वो लायबिलिटी निकली। अब बीजेपी को बिहार में 20 सालों की राज्य सरकार और 10 साल की केंद्र सरकार की एंटीइनकमबेंसी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में पिछली बार बिहार में क्लीन स्वीप करने वाली भाजपा को इस बार दहाई तक पहुंचने के लिए भी संघर्ष करना पड़ सकता है।
वहीं मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी ने पर्ची से मुख्यमंत्री बनाकर जिस तरह पार्टी के बड़े नेताओं को किनारे किया है उससे इन राज्यों के भीतर पार्टी की इकाइयों में भयानक असंतोष फैल गया है। इस असंतोष की खबर बीजेपी आलाकमान को भी लग चुकी है। तीनों ही राज्यों की जनता डमी मुख्यमंत्री को बिठाने और अपने पसंदीदा नेता/मुख्यमंत्री की दुर्गति से हतप्रभ है और बीजेपी से नाराज है। कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी इसका विपरीत असर पड़ा है।
बीजेपी की संभावित हार की भनक मोदी और शाह को भी है। पूरे देश में किए गए एक आंतरिक सर्वे में भाजपा की बुरी स्थिति की तरफ खुलकर इशारा किया गया है। इसीलिए दूसरे दलों के नेताओं को अपनी और आकर्षित करने या राज्यसभा सीटों के बदले कुनबा बढाने की भरपूर कोशिश जारी है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि बीजेपी अब खुद से खुद को बचाने और छुपाने के लिए मीडिया की आड़ में ले रही है। उन्होंने आशंका जताई है कि कहीं 400 पार का नारा बीजेपी के लिए फील गुड साबित ना हो जाए। वैसे भी बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी और देश की आर्थिक स्थिति जनता के बीच अब बड़े मुद्दे बनते जा रहे हैं।

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