You are here
Home > Uncategorized > शिवराज-भाजपा, महाराज-भाजपा और नाराज-भाजपा के बयान से भोपाल से दिल्ली तक खलबली

शिवराज-भाजपा, महाराज-भाजपा और नाराज-भाजपा के बयान से भोपाल से दिल्ली तक खलबली

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा से भी जवाब-तलब

भोपाल/नई दिल्ली – पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र और पूर्व मंत्री दीपक जोशी के कांग्रेश में शामिल होने का मामला तूल पकडऩे लगा है। उसमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के उस बयान ने आग में घी का काम किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि मप्र भाजपा तीन गुटों में बटी है, शिवराज-भाजपा, महाराज-भाजपा और नाराज-भाजपा। दिग्विजय के इस बयान को मप्र भाजपा के नेताओं ने भले ही मजाक में लिया है, लेकिन हाईकमान ने इसे गंभीरता से लिया है और सत्ता-संगठन से इस संदर्भ में जवाब मांगा है। भाजपा सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, भाजपा का आलाकमान मप्र में हुई बगावत से काफी आहत है। इस संदर्भ में जहां हाईकमान ने अपने सूत्रों से रिपोर्ट मांगी है, वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा से भी जवाब-तलब किया है। बताया जाता है कि दीपक जोशी की बगावत के साथ ही दिग्विजय सिंह के बयान की हकीकत की रिपोर्ट देने को कहा गया है। सूत्रों का कहना है कि जल्द ही तीनों को एकसाथ या फिर बारी-बारी से दिल्ली तलब किया जा सकता है।

स्थिति 2018 से भी बदतर


भाजपा सूत्रों का कहना है कि 2018 में भाजपा के सामने केवल कांग्रेस की चुनौती थी। जहां कांग्रेस कमलनाथ के नेतृत्व में पूरी तरह एकजुट होकर चुनाव लड़ी थी और भाजपा के तमाम दावे के बाद भी उससे अधिक सीटें लाकर सत्ता में काबिज हुई थी, लेकिन इस बार तो भाजपा को कांग्रेस के साथ ही सिंधिया समर्थकों और असंतुष्ट भाजपाईयों से भी निपटने की चुनौती है। सूत्र दावा करते हैं कि पार्टी के सामने खड़ी चुनौतियों को दरकिनार करते हुए सत्ता और संगठन केवल इस प्रदर्शन में लगे हुए हैं कि मप्र में भाजपा मजबूत है। अगर यही स्थिति रही तो इस बार के चुनाव में पार्टी 2018 से भी खराब प्रदर्शन करेगी।

200 का टारगेट, 100 के भी लाले पड़े


गौरतलब है कि प्रदेश भाजपा ने 51 फीसदी वोट के साथ 200 सीटें जीतने का सपना हाईकमान को दिखाया है। लेकिन संघ के एक सर्वे में यह बताया गया है कि वर्तमान स्थिति में भाजपा 100 सीटें जीतने की स्थिति में भी नहीं है। ऐसे में पार्टी के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। इसलिए आलाकमान ने पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ ही संघ के स्वयंसेवकों को भी मोर्चे पर तैनात कर दिया है।

शिवराज के सामने चुनौतियां


राज्य में इस साल होने वाले चुनावों की तैयारी के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरे प्रदेश का तूफानी दौरा कर रहे हैं। वो हर जिले में कोई न कोई बड़ी परियोजना की शुरुआत कर भी रहे हैं। लेकिन घर के अन्दर यानी संगठन में चल रहा असंतोष उनके लिए परेशानी का कारण बना हुआ है। गतदिनों को जब वो अचानक दिल्ली गए तो अटकलों का बाजार गर्म हो गया। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने संगठन और संघ के जिम्मेदार लोगों के पास जाकर मप्र में हो रही बगावत के संदर्भ में सफाई दी। बताया जाता है की उनकी सफाई से हाईकमान संतुष्ट नहीं है। शिवराज का फिलहाल संगठन के असंतुष्ट नेताओं से निपटने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है जिसे पूरा किए बिना उन्हें चुनावों में बेहतर परिणामों की कोई गारंटी नहीं मिल सकती। प्रदेश भाजपा में मौजूदा समय में कैडर की बजाय गुट चलने लगे हैं। सीएम के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस बार ये है कि विधानसभा में उनकी 127 सीटों में से 18 ऐसी सीटें हैं जिन पर कांग्रेस से इस्तीफा देकर आए विधायक हैं। इसके अलावा 9 सीटें ऐसी हैं जिन पर कांग्रेस से दल बदल कर आए हुए नेता उपचुनाव के हारने के बाद भी फिर से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।


भाजपा में सबको साथ लेकर चलने की चुनौती


भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि भाजपा माने या ना माने, इस बार उसे न सिर्फ सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है बल्कि पार्टी के अन्दर की बगावत ने भी चिंता बढ़ा दी है। प्रदेश में भाजपा के लगातार सत्ता में रहने के कारण संगठन न केवल कमजोर हुआ है, बल्कि उसकी सत्ता पर निर्भरता भी बढ़ गई है। जिस पार्टी को कुशाभाऊ ठाकरे, कैलाश जोशी, नारायण प्रसाद गुप्ता, प्यारेलाल खंडेलवाल और सुंदर लाल पटवा ने प्रदेश में खड़ा किया था वो शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में सत्ता के इशारों पर काम करने को मजबूर हो गयी है। वह कहते हैं कि प्रदेश में भाजपा की सत्ता और उसके संगठन में समन्वय की कमी साफ दिखने लगी है। वे दिग्विजय सिंह के आरोपों को सही ठहराते हुए कहते हैं कि फिलहाल भाजपा में तीन गुट तो प्रमुख तौर पर दिख रहे हैं। पार्टी का संगठन, शिवराज सिंह चौहान का खेमा और ज्योतिरादित्य सिंधिया का खेमा। एक गुट उन लोगों का भी बन रहा है जो संगठन में अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगे हैं।

Top